ड्रैगन के होश उड़ा देगा भारत का ये ताकतवर फाइटर जेट, विश्व युद्ध के बाद अंडमान में फिर से हुआ तैनात

नई दिल्ली: भारत लगातार अपनी सीमा पर चौकसी को मजबूती देता रहता है. देश की सुरक्षा में किसी भी समझौते से इंकार करने वाली मोदी सरकार अब ड्रैगन को अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए अंडमान में सीमा चौकसी मजबूत करने जा रहा है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार भारत ने चीन से मुकाबले के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में फाइटर प्लेन तैनात करने का फैसला किया है.जेट

भारत की कोशिश महत्वपूर्ण मलक्का, सुंदा, लुम्बोक और ओम्बई वेतार जलडमरूमध्य के साथ हिंद महासागर के पश्चिमी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की है. यह पहली बार होगा जब दूसरे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंडमान निकोबार में फाइटर प्लेन तैनात किए जाएंगे.

यह भी पढ़ें: पाक की ‘नापाक’ चाल का हुआ खुलासा, जेलों में कैद आतंकियों को कश्मीर भेजने की कोशिश

मलक्का, सुंदा और लुम्बोक जलडमरूमध्य संकरे समुद्री रास्ते हैं, जो हिंद महासागर को दक्षिणी चीन सागर से जोड़ते हैं. विश्व व्यापार का 70 फीसदी इन संकरे रास्तों से होकर जाता है.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सुरक्षा बढ़ाने का फैसला उस समय हुआ है, जब पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक वार्ता के बाद दोनों देशों ने 3,488 किमी लंबी और विवादित नियंत्रण रेखा पर अपने रुख को शांत बनाने पर जोर दिया है.

भारतीय नौसेना ने इस इलाके में 19 महत्वपूर्ण युद्धपोत तैनात किए हैं और युद्धपोतों की मरम्मत और नवीनीकरण के लिए दो तैरने वाले जहाज गोदाम भी बनाए हैं.

पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा से ज्यादा चीनी युद्धपोत, पनडुब्बी और परमाणु पनडुब्बी भारत के हिस्से वाले समुद्री क्षेत्र में देखे गए हैं. चीन का मकसद हिंद महासागरीय क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने का है.

हाल ही में नौसेना ने भारतीय समुद्री क्षेत्र में घुसे चीनी युद्धपोतों की तस्वीर ट्वीट करके बीजिंग को साफ संदेश दिया था कि वो इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रख रही है. पिछले कुछ समय से आक्रामक चीन के खिलाफ अंडमान निकोबार चेन लाइन को डिफेंस के तौर पर बढ़ावा देने की योजना है. इसे अमलीजामा पहनाने के लिए मोदी सरकार ने इस पर ध्यान केंद्रित किया है.

यह भी पढ़ें: राजधानी पहुंचा AMU विवाद, जामिया में भारत छोड़ो का आवाहन

द्वीपसमूह श्रृंखला में मरम्मत और नवीनीकरण सुविधाओं को स्थापित करने के महत्व को समझाते हुए एक वरिष्ठ नौसेना अधिकारी ने कहा, ‘युद्धपोतों को मरम्मत के लिए भारत की मुख्य जमीन पर वापस लाने की कोई आवश्यकता नहीं है.’

नाम न छापने की शर्त पर सरकार के शीर्ष सूत्रों को बताया कि लड़ाकू विमानों के लिए संभावित बेस के तौर पर कार निकोबार और कैंपबेल खाड़ी स्थित एयर बेस की पहचान की गई है.

अधिकारी ने कहा, ‘अंडमान को प्रोजेक्ट पावर के लिए भारत की शीर्ष चौकियों में से एक के रूप में उभरना चाहिए.’ बता दें कि कार निकोबार स्थित बेस को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है, जबकि कैंपबेल खाड़ी स्थित एयरस्ट्रिप को भारी एयरक्राफ्ट के लायक बनाया जा रहा है. अभी तक रूस निर्मित एमआई17वी5 को निकोबार एयरबेस पर तैनात किया गया है.

सरकार का नया आदेश अंडमान और निकोबार कमांड को इस बात की भी शक्ति दे सकता है कि वह चार्टर बनाने के लिए उपयुक्त संसाधनों की मांग कर सकता है.

यह भी पढ़ें: नवाज की शराफत में 5 अरब डॉलर का लोचा, जांच शुरू

अंडमान और निकोबार के कमांडर इन चीफ को और ज्यादा सशक्त बनाने के लिए सरकार ने हाल ही में वैधानिक नियम और आदेशों को अधिसूचित किया है, जो अंडमान और निकोबार कमांड को वायुसेना और आर्मी के जवानों पर सीधे नियंत्रण की अनुमति देता है.

गौरतलब है कि अभी तक तीनों सेनाओं के जवान, अधिकारी विभिन्न एक्ट और नियमों के तहत शासित किए जाते रहे हैं. हालांकि ये बदलाव खासतौर पर अंडमान और निकोबार कमांड के लिए किए जा रहे हैं.

अंडमान और निकोबार कमांड की स्थापना अक्टूबर 2001 में हुई थी, लेकिन तीनों सेनाओं के बीच क्षेत्र को लेकर आपसी लड़ाई में ये अपनी पूरी ताकत को हासिल कर पाने में नाकाम रहा है.

LIVE TV