वक्फ संशोधन एक्ट पर कानूनी लड़ाई शुरू, सुप्रीम कोर्ट आज 73 याचिकाओं पर करेगा सुनवाई
उच्चतम न्यायालय बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिनमें कथित धार्मिक भेदभाव और कार्यकारी अतिक्रमण से लेकर वक्फ सुरक्षा को कमजोर करने तक के आधार शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है , जिसने पूरे देश में व्यापक विरोध और आपत्तियों को जन्म दिया है। आलोचकों का तर्क है कि यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और संपत्तियों को जब्त करने का प्रयास है, जबकि सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए संशोधन आवश्यक है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष कुल 73 याचिकाएँ सूचीबद्ध की गई हैं, जो बुधवार दोपहर 2 बजे याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेंगी।
याचिकाओं में हिंदू पक्षकारों द्वारा 1995 के मूल वक्फ अधिनियम के खिलाफ दायर दो याचिकाएं भी शामिल हैं, जबकि अन्य ने हाल के संशोधनों की वैधता पर सवाल उठाए हैं। कुछ याचिकाकर्ताओं ने अदालत द्वारा मामले का फैसला किए जाने तक अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की है।
आवेदकों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी, समाजवादी पार्टी, अभिनेता विजय की टीवीके, आरजेडी, जेडीयू, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, आप और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित विभिन्न दलों के नेता शामिल हैं।
इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है तथा उनके धार्मिक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
इस बीच, सात राज्यों ने अधिनियम के समर्थन में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है और मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका तर्क है कि यह अधिनियम संवैधानिक रूप से सही है, गैर-भेदभावपूर्ण है और वक्फ संपत्तियों के कुशल और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
केंद्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दाखिल किया है। कैविएट एक कानूनी नोटिस होता है जिसे कोई भी पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए दाखिल करता है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उसकी बात सुनी जाए।
सरकार ने हाल ही में वक्फ संशोधन अधिनियम को अधिसूचित किया है, जिसे 5 अप्रैल को संसद के दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बीच पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। विधेयक को राज्यसभा में 128 सदस्यों के पक्ष में और 95 के विरोध में पारित किया गया और लोकसभा में 288 मतों के समर्थन और 232 मतों के विरोध में इसे मंजूरी दी गई।
चुनौती का आधार
याचिकाकर्ताओं ने वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ निम्नलिखित तर्क उठाए हैं:
- यह अधिनियम चुनावों को समाप्त करके वक्फ बोर्डों के लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि ढांचे को नष्ट कर देता है।
- यह विधेयक गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में नियुक्त करने की अनुमति देता है, जो मुस्लिम समुदाय के स्वशासन के अधिकार का उल्लंघन है।
- यह समुदाय की अपनी धार्मिक संपत्तियों पर दावा करने, उनका बचाव करने या उन्हें परिभाषित करने की क्षमता को समाप्त कर देता है।
- यह वक्फ भूमि के भविष्य को कार्यकारी प्राधिकारियों की दया पर छोड़ देता है।
- अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को वक्फ बनाने से रोक दिया गया है, जो उनके अधिकारों का हनन है।
- वक्फ की परिभाषा में परिवर्तन कर दिया गया है, तथा ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ की अवधारणा को हटा दिया गया है, जो न्यायिक रूप से विकसित सिद्धांत है।
- ये संशोधन वक्फ और उनके नियामक ढांचे को दी गई वैधानिक सुरक्षा को अपरिवर्तनीय रूप से कमजोर कर देते हैं।
- वे अन्य हितधारकों और हित समूहों को अनुचित लाभ पहुंचाते हैं।
- यह अधिनियम अन्य धर्मों के वक्फों और धर्मार्थ संस्थाओं को दी जाने वाली विभिन्न सुरक्षा को छीन लेता है।
- यह मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को कम करता है तथा उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- यह मनमाने ढंग से कार्यकारी हस्तक्षेप को सक्षम बनाता है तथा अल्पसंख्यकों के अपने धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों के प्रबंधन के अधिकारों को कमजोर करता है।
- कई वक्फ संपत्तियां, विशेष रूप से मौखिक समर्पण के माध्यम से स्थापित या दस्तावेज के अभाव में स्थापित संपत्तियां, नष्ट हो सकती हैं।
- लगभग 35 संशोधन पेश किए गए हैं, जिन्हें राज्य वक्फ बोर्डों को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
- इन संशोधनों को वक्फ संपत्तियों को सरकारी संपत्तियों में परिवर्तित करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
- मूल 1995 अधिनियम में पहले से ही वक्फ प्रबंधन के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान किया गया था; इस संशोधन को अनावश्यक और हस्तक्षेपकारी माना जा रहा है।
- इस अधिनियम से मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं में बड़े पैमाने पर सरकारी हस्तक्षेप की आशंका है।
- कुछ प्रावधानों के कारण सदियों पुरानी संपत्तियों का वक्फ दर्जा पूर्वव्यापी रूप से समाप्त हो सकता है।
विधेयक को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आप विधायक अमानतुल्ला खान, तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा, राजद सांसद मनोज कुमार झा और फैय्याज अहमद तथा कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद जैसे विविध व्यक्ति और राजनीतिक हस्तियां शामिल हैं।
धार्मिक संगठनों में प्रमुख याचिकाकर्ताओं में समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी शामिल हैं।
इस कानून के खिलाफ दो हिंदू याचिकाकर्ताओं ने भी शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। अधिवक्ता हरि शंकर जैन ने एक याचिका दायर कर तर्क दिया है कि इस कानून के कुछ प्रावधान मुसलमानों को सरकारी संपत्ति और हिंदुओं की धार्मिक भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करने का अधिकार देते हैं। इसी तरह की एक याचिका नोएडा निवासी पारुल खेड़ा ने भी दायर की है।