बिखरी भाजपा के अनुशासन की माला, टिकट नहीं मिला तो उठा लिया बड़ा कदम!

भोपाल। भले ही राजनेता मुकाम हासिल करने के बाद राजनीति को ‘समाज सेवा का मार्ग’ बताते न अघाते (थकते) हों, मगर हकीकत इससे जुदा है, क्योंकि राजनीति सुख-सुविधा, वैभव और गरीब से अमीर बनने का रास्ता है, तभी तो अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं ने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत कर दी है।

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हाल यह है कि बड़े-बड़े नेताओं ने बागियों की ड्योढ़ी पर दस्तक दी और झोली फैलाकर मैदान से हटने की भीख मांगी, मगर बागी हैं कि वे नहीं माने और अनुशासन की माला के मोती एक-एक कर बिखर गए।

मध्यप्रदेश में भाजपा की 15 साल से सरकार है, इसने तीन चुनाव लगातार जीते हैं, अगला चुनाव पार्टी जीतने के लिए हर संभव जोर लगा रही है। यही कारण है कि भाजपा ने बड़े पैमाने पर नए चेहरों को मौका दिया है और इसी के चलते बगावत बढ़ी।

भाजपा से बगावत कर भिंड से विधायक नारायण सिंह कुशवाह सपा, पूर्व मंत्री सरताज सिंह कांग्रेस, पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया दमोह और पथरिया, बमोरी से के.एल. अग्रवाल, सिहावल से विश्वामित्र पाठक, ग्वालियर से पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता, जबलपुर से भाजयुमो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष धीरज पटैरिया, बैरसिया से ब्रह्मानंद रत्नाकर, मेहश्वर से राजकुमार मेव, खरगापुर में अजय यादव व सुरेंद्र प्रताप सिंह, मैदान में है। यह बागी नेता अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावशाली है, जिससे भाजपा के उम्मीदवार के लिए मुसीबत बने हुए हैं।

भाजपा के दो बड़े नेता प्रभात झा और विनय सहस्रबुद्धे बुधवार को नाम वापसी के अंतिम दिन दावा करते रहे कि अधिकांश रूठे मना लिए जाएंगे, मगर उनके वादों को बागियों ने महत्व नहीं दिया। प्रभात झा को दमोह से खाली हाथ लौटना पड़ा और कुसमरिया से उनकी मुलाकात तक नहीं हुई।

राजनीति के विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के लिए कई विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस से बड़ी चुनौती भाजपा के ही बागी बनने वाले है, कई बागी ऐसे हैं जो पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत सकते थे, मगर पार्टी में हावी गुटबाजी ने जिताऊ उम्मीदवार को टिकट नहीं मिलने दिया, परिणाम स्वरूप वे निर्दलीय होकर मैदान में उतरे हैं। इसके साथ ही कई उम्मीदवार जीतेंगे नहीं, मगर भाजपा को हराने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।

दमोह और पथरिया से निर्दलीय उम्मीदवार का पर्चा भरने वाले डॉ. कुसमारिया का कहना है कि उनके चुनाव लड़ने से भाजपा को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा होगा। इस बात को पार्टी के लोग नहीं समझ रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं तो भाजपा को जिताने मैदान में उतरा हूं।”

डॉ. कुसमारिया बुंदेलखंड के बड़े कुर्मी नेता हैं। उनका प्रभाव कई विधानसभा क्षेत्रों तक है। लिहाजा, पार्टी उनके प्रभाव से चिंतित है, यही कारण है कि तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की, मगर बात नहीं बनी।

राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि राज्य के 20 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भाजपा के लिए बागी मुसीबत बनने वाले हैं और नतीजे बदलने की उनमें क्षमता है।

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पार्टी इससे वाकिफ है और समझ रही है कि अगर उनकी सरकार बनने में कोई बाधा बनेगा तो वह बागी होंगे। यही कारण रहा कि नेताओं ने बागियों को मनाने की हर संभव कोशिश की। यह बात अलग है कि वह ज्यादा सफल नहीं हुए। भाजपा के इन बागियों ने कांग्रेस को उत्साहित कर रखा है।

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भाजपा में अनुशासन का टूटना पार्टी के भीतर घर करती सत्ता की लालसा का संकेत दे रही है, नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ती दूरी की भी यह गवाह है। समाज सेवा का दावा करने वाले भाजपा नेताओं को बागियों ने आईना जरुर दिखाने का काम किया है और पार्टी को जगाने की कोशिश की है। यह बात अलग है कि पार्टी और नेता इसे किस चश्मे से देखते हैं।

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