
नई दिल्ली। चीन और पाकिस्तान का याराना तो जगजाहिर है, लेकिन ये भारत के ऐसे पड़ोसी देश हैं जो आए दिन नया शिगूफा छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वहीं एक समानता यह भी है कि ये दोनों ही देश आए दिन सीमा विवाद पैदा करते रहते हैं। ये बात और है कि पाकिस्तान से लगातार सीमा पर संघर्ष बना रहता है। जबकि चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारत के खिलाफ कदम बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ता। ताजा मामले में चीन ने एक बार फिर देश के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। बता दें मालदीव के समुद्र में चीन एक संयुक्त महासागर वेधशाला (OBS) बनाने की तैयारी कर रहा है। अगर ऐसा हुआ तो चीन का ये कदम भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
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भारत के लिए समस्या यह है कि यह वेधशाला उसी तरह की चिंता पैदा करती है, जिस तरह पिछले साल बीजिंग द्वारा दक्षिण चीन सागर में वेधशाला बनाने की घोषणा पर थी।
सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि अब भारत को मालदीव को भी एक रेड लाइन मसले की तरह देखना चाहिए और उसे मालदीव तथा चीन सरकार को यह चेतावनी देनी चाहिए कि वह समुद्र में ऐसी वेधशाला को बर्दाश्त नहीं करेगा।
हालांकि, मालदीव के मौजूदा संकट को देखते हुए अभी भारत के लिए कोई सख्त कदम उठाना बहुत मुश्किल है। इस पृष्ठभूमि में भारत और चीन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर है।
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भारत ने मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप से खुद को दूर रखा है और इस बात पर जोर दिया है कि वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को कायम करें।
मालदीव में इस तरह का केंद्र बनने से चीन को भारत के खिलाफ समुद्री मोर्चे पर बढ़त मिल सकती है। वहीं खबर यह भी है कि भारत, इस बारे में मालदीव सरकार से ही सफाई चाहता है कि आखिर यह वेधशाला क्या है।
बता दें मालदीव के विपक्ष के नेताओं का दावा है कि यह वेधशाला सैन्य जरूरत पूरी करने वाली होगी और इसमें एक पनडुब्बी बेस भी बनाया जाएगा।
खबरों के मुताबिक़ यह वेधशाला मकुनुधू में बनाई जाएगी, जो कि मालदीव के उत्तरी छोर पर स्थित सबसे पश्चिमी प्रवालद्वीप पर स्थित है।
यह जगह भारत के बहुत करीब है, इसलिए यह चीन को हिंद महासागर के महत्वपूर्ण जहाज मार्ग पर एक प्रेक्षण स्थल मुहैया करेगा।
यह भारतीय समुद्री सीमा के बहुत करीब है, इसलिए इसे लेकर मालदीव और भारत के रिश्तों के बीच एक और नकारात्मक बिंदु बन सकता है।
भारतीय अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि संयुक्त वेधशाला स्थापित करने के लिए चीन और मालदीव के बीच पिछले साल समझौते को अंतिम रूप दिया गया था।
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हालांकि अधिकारियों ने कहा कि इस समझौते के सभी बिंदुओं को जाने बिना वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।
अभी तक चीन और मालदीव ने इस प्रोजेक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी साझा नहीं की है। मालदीव की मुख्य विपक्षी पार्टी एमडीपी के एक नेता का कहना है कि भारत के लिए चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि यह वेधशाला कहीं चीन द्वारा भारत को घेरने की कथित ‘मोतियों की माला’ रणनीति के लिए एक और साधन न साबित हो।
वहीं माले के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया था कि चीन ने मालदीव में 17 द्वीप हासिल कर लिए हैं और इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि चीन यहां किस तरह की गतिविधियां कर रहा है।
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