जानिए… दानव गुरु शुक्राचार्य क्यों कहलाए शिव पुत्र

दैत्य गुरु शुक्राचार्यभगवान शिव को समर्पित ग्रंथ शिवपुराण के अनुसार महादेव ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को निगल लिया था। सौ वर्षो तक भोलेनाथ के पेट में ही रहने के बाद भी बाहर नहीं निकल पाने पर वो पेट में ही मंत्र जाप करने लगे. लेकिन शिव जी ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे एक रोचक कथा है।

आइये जानते है, क्या है यह रोचक कथा

शुक्राचार्य भृगु महर्षि के पुत्र थे। इन्होंने ने बाल्यकाल में कुछ समय तक देवगुरु बृहस्पति के पिता अंगीरस के यहां विद्या प्राप्त की। आचार्य अंगीरस विद्या सिखाने में शुक्र के प्रति विशेष रुचि नहीं दिखाते थे। निराश होकर शुक्र ने अंगीरस का आश्रम छोड़ दिया और गौतम ऋषि के यहां जाकर विद्यादान करने की प्रार्थना की। लेकिन आचार्य गौतम ने बड़ी ही सहजता से शुक्र को एक सलह दी।

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गौतम मुनि ने शुक्र को समझाया, पुत्र इस समस्त जगत के गुरु केवल देवो के देव महादेव ही हैं। इसलिए तुम उनकी आराधना करो। तुम्हें समस्त प्रकार की विद्याएं और गुण स्वत: प्राप्त होंगे।

गौतम मुनि की सलाह पर शुक्र ने शिव जी के लिए कठोर तपस्या की। शिव जी शुक्र की तपस्या से प्रसन्न हो गए। तत्पश्चात महादेव ने प्रत्यक्ष प्रकट होकर शुक्र को मृत संजीवनी विद्या का वरदान दिया। लेकिन शुक्र ने मृत संजीवनी विद्या के बल पर समस्त मृत राक्षसों को जीवित करना आरंभ किया।

परिणामस्वरूप दानव अहंकार के वशीभूत हो देवताओं को यातनाएं देने लगे। फलत: देवता और दानवों में निरंतर युद्ध होने लगे।

देवता असहाय हो गए थे। वे युद्ध में दानवों को पराजित नहीं कर पाए। कोई उपाय ना पाकर वे शिव जी की शरण में गए, क्योंकि शिव जी ने शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या प्रदान की थी। इसलिए देवताओं ने शिव जी से शिकायत की, महादेव, आपकी विद्या का दानव दुरुपयोग कर रहे हैं। शुक्राचार्य संजीवनी विद्या से मृत दानवों को जीवित कर रहे हैं। यही हालात रहे तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। कृपया आप देवताओं का उद्धार कीजिए।

शुक्राचार्य द्वारा मृत संजीवनी विद्या का इस प्रकार अनुचित कार्य में उपयोग करना शिव जी को भी अच्छा न लगा। शिव जी क्रोध में आ गए और शुक्राचार्य को निगल लिया। महादेव द्वारा शुक्राचार्य को निगलने के बाद राक्षसों की सेना कमजोर हो गई और अंत में देवताओं की विजय हुई। इधर, भगवान शिव के पेट में शुक्राचार्य बाहर आने का रास्ता खोजने लगे। शुक्राचार्य सौ सालों तक महादेव के पेट में ही रहे। अंत में जब शुक्राचार्य बाहर नहीं निकल सके तो वे शिवजी के पेट में ही मंत्र जाप करने लगे।

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इस मंत्र के प्रभाव से शुक्राचार्य महादेव के शुक्र रूप में बाहर निकले। तब उन्होंने शिवजी से क्षमा याचना की। शुक्राचार्य के इस तरह बाहर निकलने पर भगवान शिव ने उनसे कहा कि तुम मेरे शुक्र की तरह निकलो हो,  इसलिए अब तुम मेरे पुत्र कहलाओगे।

महादेव के मुख से ऐसी बात सुनकर शुक्राचार्य उनकी जय-जयकार करने लगे। माता पार्वती ने भी शुक्राचार्य को अपना पुत्र मानकर वरदान दिए।

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