वो क्या वजह थी कि दक्षिण भारत में नहीं चल पाई मोदी लहर !…

2019 के लोकसभा चुनाव में भी प्रचंड ‘मोदी लहर’ दक्षिण के ‘दुर्ग’ को नहीं तोड़ पाई. नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व का जलवा पूरे देश में दिखा, सिवाय दक्षिण भारत के. कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण के अन्य सभी राज्यों में मोदी का जादू फीका दिखा.

दक्षिण के कई राज्यों में बीजेपी के खाते भी नहीं खुल सके. इस प्रकार देखें तो लाख कोशिशों के बावजूद एक बार फिर बीजेपी देश के इस हिस्से में पांव पसारने में सफल नहीं हो पाई है. दक्षिण फतह करने के लिए अब बीजेपी को पांच साल और इंतजार करना पड़ेगा.

 

पांच राज्यों में क्या है हाल

दक्षिण भारत में राजनीतिक रूप से खास अहमियत रखने वाले पांच प्रमुख राज्य हैं. इन राज्यों में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं. कर्नाटक और तेलंगाना को छोड़ दिया जाए तो बाकी राज्यों में बीजेपी का खाता भी खुलने की उम्मीद नहीं है.

तमिलनाडु में बीजेपी को खाता खुलने की उम्मीद थी, मगर अब तक के रुझानों के मुताबिक एक भी सीट पर बढ़त नहीं मिली है. यहां सत्ताधारी एआईएडीएमके पर डीएमके भारी पड़ी. तमिलनाडु में कुल 38 में से 35 सीटों पर डीएमके आगे चल रही है तो सत्ताधारी एआईएडीमके सिर्फ तीन सीटों पर बढ़त बनाए हुए है.

इसी तरह आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस की आंधी में चंद्रबाबू नायडू की सत्ताधारी टीडीपी उड़ गई. केरल में भी कुल 20 सीटों में यूडीएफ ने अपनी ताकत दिखाई. तेलंगाना की कुल 17 सीटों में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति सबसे आगे रही तो बीजेपी और कांग्रेस उससे काफी पीछे रहे. इस तरह से सिर्फ कर्नाटक में ही बीजेपी अच्छी स्थिति में दिखी. दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी खाता नहीं खुलने की स्थिति है.

 

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2014 का प्रदर्शन

दक्षिण भारत के पांच प्रमुख राज्यों में 129 लोकसभा सीटें हैं. जो काफी मायने रखतीं हैं. सबसे ज्यादा 39 लोकसभा सीटें तमिलनाडु में हैं. वहीं आंध्र प्रदेश में 25, कर्नाटक में 28, केरल में 20 और तेलंगाना में 17 सीटें हैं.बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में बीजेपी ने 17 लोकसभा सीटें जीती थीं. अन्य राज्यों में बीजेपी का नामोनिशान नहीं था.

 

लहर का क्यों नहीं हुआ असर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दक्षिण भारत में बीजेपी को मजबूत करने के लिए कई दांव चले. यहां तक कि मोदी ने कई बार दक्षिण की जनता की भावनाओं को छूने की कोशिश की.

मगर रुझान बताते हैं कि इसमें सफलता नहीं मिली. 15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने भाषण में पीएम मोदी ने आंध्र प्रदेश की सुब्रह्मण्यम भारती का जिक्र करने के साथ अरविंद घोष की कविताओं की चर्चा कर जनता से कनेक्ट करने की कोशिश की थी.

बताया जाता है कि पीएम मोदी जिस तरह से हिंदीपट्टी की जनता को कनेक्ट करने में सफल रहे, उस लिहाज से दक्षिण की जनता को नहीं लुभा सके. यही वजह है कि दक्षिण के राज्यों में 2019 के लोकसभा चुनाव में भी क्षेत्रीय दल हावी रहे.

 

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