वास्तुदोषों के दूर करने के साथ स्वास्थ्य रहने के लिए ,घर में हमेशा कराए हवन…

परिवार में सुख, समृद्धि  और शांति  के लिए पूजा-पाठ कराया जाता हैं परन्तु पूजा-पाठ में वास्तुदोष का एक अलग ही महत्व होता है।सदियों से चली आ रही सनातन संस्कृति में भी हवन कराना सुख-सौभाग्य का प्रतिक माना गया है। ऐसा मान्यता है कि जिस स्थान पर हवन कराया जाता है वहां का पूरा वातावरण स्वच्छ और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है,साथ ही रोगाणु और विषाणुओं के नष्ट होने से पर्यावरण भी शुद्ध होता है। हवन

परिवार में सुख, शांति, आरोग्य एवं समृद्धि के लिए हम सब भगवान के नाम का स्मरण पूजा-पाठ इत्यादि करते हैं। सनातन संस्कृति में सुख-सौभाग्य के लिए प्रतिदिन अथवा मुख्य अवसरों पर हवन करने को आवश्यक बताया गया है। जिस स्थान पर हवन किया जाता है, वहां उपस्थित लोगों पर तो उसका सकारात्मक असर पड़ता ही है साथ ही वातावरण में मौजूद रोगाणु और विषाणुओं के नष्ट होने से पर्यावरण भी शुद्ध होता है, शरीर स्वस्थ्य रहता है। क्योंकि हवन में काम में ली जाने वाली जड़ी बूटी युक्त हवन सामग्री, शुद्ध घी, पवित्र वृक्षों की लकड़ियां, कपूर आदि के जलने से उत्पन्न अग्नि और धुएं से वातावरण शुद्ध तो होता ही है,नकारात्मक शक्तियां भी दूर भागती हैं।

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ग्रहों का अशुभ प्रभाव होता है दूर
यदि  किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बैठे ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहे हों तो विधि-विधान पूर्वक हवन करते रहने से जल्दी ही ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते हैं। पीड़ा देने वाले ग्रह से संबंधित वार को संकल्प करके ग्यारह या इक्कीस व्रत रखकर उसके उपरांत होम करके पूर्णाहुति देने से रोग, शोक, कष्ट और बाधाओं का निवारण होता है। हवन पूरा होने के बाद श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को धन, अन्न, फल, वस्त्र, जीवनोपयोगी वस्तुएं दान करने से ग्रह शांति होती है। वही हवन के समय तांबे के पात्र के जल का आचमन करने से हमारी इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं तथा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने तन-मन स्वस्थ्य रहता है।

वास्तु दोषों से मिलती है मुक्ति
वास्तु में माना जाता है कि हवन-पूजन करने से ब्रह्माण्ड में स्थित सकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवाह बढ़ जाता है,आसुरी शक्तियां दूर होती हैं। भवन निर्माण के समय रह गए वास्तु दोषों को दूर करने के लिए सबसे आसान और अच्छा तरीका हवन करना ही है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार भवन में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का संतुलन वहां रहने वालों को सुखी और संपन्न बनाये रखने में मदद करता है,हवन सामग्री इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। भवन में किसी तरह का कोई वास्तु दोष न रह जाए , इसलिए निर्माण से पूर्व शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और शिलान्यास में मंत्रोपचार के साथ हवन का महत्व है। इसी प्रकार भवन का निर्माण पूरा होने के बाद शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश के समय भी वास्तु पूजन के साथ हवन किया जाता है। जिससे कि भवन का आंतरिक और बाहरी वातावरण शुद्ध एवं पवित्र बना रह सके और उसमें रहने वाले सदस्य सभी प्रकार के रोग और पीड़ाओं से मुक्त रहकर सुख-शांति से जीवन जी सकें।

हवन से मिलता है प्राकृतिक लाभ
ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं,जिनका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है।अनेक वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हुआ है कि हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले अनेकों प्राकृतिक लाभ मिलते है,जो हमें एवं हमारी प्रकृति को लाभ पहुंचाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से हवन से निकलने वाले अग्रि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली हवन की प्राकृतिक सामग्री यानी समिधा वातावरण में फैले रोगाणु और विषाणुओं को नष्ट करती है, बल्कि प्रदूषण को भी मिटाने में सहायक होती है। साथ ही उनकी सुगंध व ऊष्मा मन व तन की अशांति व थकान को भी दूर करने वाली होती है। इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है।

 

 

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