लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का हरावल होगा ‘ऑपरेशन शक्ति’

नई दिल्ली। यह समझने के लिए कि ‘ऑपरेशन शक्ति’ का मूल तत्व क्या है, इसके लिए सेंट्रीफ्यूज प्रवीण चक्रवर्ती से समझना चाहा कि कांग्रेस, भाजपा को घेरने के लिए क्या कर रही है।

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उन्होंने कहा, “शुरू में मैं इस पूरी कायापलट को लेकर आशावादी था, लेकिन जब मैंने कांग्रेस अध्यक्ष को एक कार्यकर्ता को उसका नाम लेकर बुलाते और बात करते देखा और जो रिस्पॉन्स उन्हें मिल रहा था, उससे मुझे अहसास हुआ कि भीड़ की बुद्धिमत्ता कभी गलत नहीं हो सकती, कि लोगों को हर चीज में शामिल करो जो कि सच्चे लोकतंत्र या लोगतंत्र (पीपुलक्रेसी) की वास्तविक परिणति है।”

चकी के नाम से पहचाने जाने वाले व्हार्टन से पढ़े डेटा विज्ञानी प्रवीण चक्रवर्ती ने कहा, “इसी वजह से दिल्ली में तीस हजार लोगों के बीच सर्वे कर उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि कांग्रेस का अध्यक्ष किसे बनना चाहिए।”

उन्होंने बताया, “तीन उत्तर और मध्य भारत के राज्यों में मुख्यमंत्री व सभी प्रत्याशी इसी इंटरफेस का इस्तेमाल करते हुए चुने गए। इसका टेम्पलेट जेम्स सुरोवेइकी की किताब ‘विजडम ऑफ क्राउड्स’ से लिया गया है।

जिसमें इस सहज विचार को बताया गया है कि कुछ संभ्रांत (एलीट) लोगों की तुलना में लोगों के बड़े समूह अधिक स्मार्ट होते हैं। फिर वह चाहे समस्याओं के समाधान की बात हो, नवोन्मेष हो, समझदारी भरे फैसले लेने हों या फिर भविष्य के बारे में बताने की ही बात क्यों न हो।”

गोल्डमैन सैक्स वाल स्ट्रीट के पूर्व बैंकर चक्रवर्ती ने कहा, “डेटा मौजूद था, राजनैतिक विज्ञानी के रूप में मेरा अनुभव और विशेषज्ञता काम आए और छह महीने के अंदर पता चला कि डेटा शुद्ध सोना है जिसका बहुत अच्छे से इस्तेमाल करने की जरूरत है।”

और, प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस अध्यक्ष डेटा की वस्तुनिष्ठता और चुनावी स्थितियों का तोड़ निकालने में इसे प्रधानता देने में बेहद गहरा विश्वास रखते हैं।

यूआईडीएआई में नंदन नीलेकणि और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय में पूर्व में काम कर चुके चक्रवर्ती ने कहा, “हमने राज्यों के इन चुनावों से काफी कुछ सीखा, कि क्या काम आया और क्या नहीं, और इस सीख को लोकसभा चुनाव के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

अपने अभियान को इसी के अनुरूप ढालने के लिए योजना तैयार है, यह काम अभी जारी है और कई जगहों से मिले जमीनी स्तर के फीडबैक से इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।”

उन्होंने कहा, “यह प्रत्याशियों के चयन, संचार के साधनों, मुद्दों-सभी कुछ के बारे में होगा। मेरा पूरा आउटपुट सीधे और केवल कांग्रेस अध्यक्ष के पास जाता है और फिर वह आगे के लिए निर्देश देते हैं।”

2019 की जंग दो लाख मतदान केंद्रों पर लड़ी जाने वाली है और मुद्दे जगह के हिसाब से अलग-अलग होंगे।

उदाहरण के लिए, राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ने भोपाल में पाया कि भूमिहीन किसान और युवा नोटबंदी से बिफरे हुए हैं, सवर्ण कहीं और आरक्षण चाहते हैं आदि।

चकी ने बिट्स पिलानी से पढ़ाई की और जापान में आईबीएम के साथ काम किया, माइक्रोसॉफ्ट के साथ विन्डोज 95 पर काम किया। फिर व्हार्टन से मास्टर्स करने के बाद इन्वेस्टमेंट बैंकिंग की दुनिया से जुड़े और फिर 2005 में लौटकर भारत आए।

उनका मानना है कि भारत में कोई आम चुनाव नहीं होता है, यह कुछ हिस्सों का जोड़ है जिसमें 29 राज्य एक साथ चुनावों में शामिल होते हैं।

चक्रवर्ती ने कहा, “राष्ट्रीय चुनाव एक मिथक है। हमारा रुख यह है कि हर राज्य पर अलग-अलग निशाना लगाओ क्योंकि सभी की अपनी अलग समस्याएं हैं। हमारे अनवरत सर्वेक्षणों और लोगों से मिली जानकारियों ने हमें बताया कि नोटबंदी से रोजगार का संकट पैदा हुआ, इससे समाज का कोई वर्ग अछूता नहीं रहा। 8 नवंबर की रात अचानक हुए इसके ऐलान ने देश के लोगों की कमर तोड़कर रख दी।”

कांग्रेस गब्बर सिंह टैक्स (जीएसटी) पर अपनी मोर्चेबंदी को लेकर काफी उत्साहित है क्योंकि उसे लगता है कि यह सफल रही है। वे नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहेंगे लेकिन दृढ़ प्रधानमंत्री के लोगों से जुड़ाव के कौशल पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। इस पेचीदा नैरेटिव के बीच, कांग्रेस अर्थव्यवस्था पर फोकस रखने जा रही है क्योंकि उसे लगता है कि अर्थव्यवस्था की हालत बुरी है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के चुनाव अभियान के अगुवा ‘रोजगार की कमी, किसानों के लिए दाम की समस्या, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग के लिए सर्वाधिक कम मांग (जिसके लिए नोटबंदी जिम्मेदार है) होंगे जिनसे अर्थव्यवस्था पर और इसकी खराब हालत ने कैसे सभी पर असर डाला है, इस पर फोकस वापस लाया जा सकेगा।’

कांग्रेस का मनोबल इस वक्त काफी बेहतर स्थिति में है। जीत से मदद मिलती है और तीन राज्यों की जीत सोने पे सुहागा के समान है। कांग्रेस के अभियान में नवीन तत्व डाले गए हैं, लोगों से जुड़ाव के इसके रुख में एक ताजापन है।

भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल 65 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इन राज्यों में अभी संपन्न चुनाव के डेटा के हिसाब से अगर आज चुनाव हो तो भाजपा इनमें से पचास सीट हार जाएगी। लेकिन, तय ही है कि राज्यों के चुनाव, उप चुनाव और आम चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं।

आम चुनाव के साथ-साथ तीन राज्यों आंध्र प्रदेश, ओडिशा और शायद जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं।

आम चुनाव के तुरंत बाद, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होंगे।

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कांग्रेस ने 2009 के आम चुनाव में 206 सीटें जीती थीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन, दिसंबर 2013 तक अगर तमाम राज्यों में हुए चुनावों के डेटा पर नजर डाली जाए तो सीट की यह संख्या घटकर 106 रह गई थी।

ऐसे में कांग्रेस अगर मई 2014 में घटकर 44 सीट पर आ गई तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी क्योंकि उसके आधार का व्यापक स्तर पर क्षरण हुआ था। ऐसा ही कोई लिटमस टेस्ट भाजपा का इंतजार नहीं कर रहा है।

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