पूर्वोत्तर के पहाड़ में रेल पटरी बिछाने में हो रही कड़ी मशक्कत

अगरतला| देश के पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में रेल की पटरियां बिछाने में रेलवे को अतिरिक्त लागत के साथ-साथ भौगोलिक परिस्थिति, मिट्टी और प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह बात रेलवे के एक शीर्ष अधिकारी ने बताई।

रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस-एनई सर्कल) शैलेश कुमार पाठक के अनुसार, पूर्वोत्तर के आठ पहाड़ी राज्यों के भौगोलिक परिदृश्य, मिट्टी की स्थिति और अन्य प्राकृतिक चुनौतियों के कारण रेलवे को अधिक धन खर्च करना पड़ रहा है और विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
पूर्वोत्तर के पहाड़
त्रिपुरा में हाल ही में बिछाई गई पटरी का परीक्षण करने के बाद आईएएनएस से बातचीत में पाठक ने कहा, “पूर्वोत्तर क्षेत्र के मुकाबले प्रमुख राज्यों में रेल की पटरी बिछाने में खर्च कम होने के साथ-साथ चुनौतियां भी कम होती हैं।”

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) पर पश्चिम बंगाल के सात जिलों के अलावा सिक्किम समेत पूवरेत्तर के राज्यों में रेल पटरी बिछाने का काम आगे बढ़ाने के साथ-साथ ट्रेन सेवा सुचारु करने का दायित्व है।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के वरिष्ठ अभियंता पाठक ने कहा, “एनएफआर में साल में महज चार से पांच महीने वांछित रफ्तार के साथ काम होता है क्योंकि मार्च से लेकर अक्टूबर के अंत तक इलाके में काफी बारिश होती है, जबकि मानसून का सीजन जून से सितंबर तक रहता है। भारत के अन्य राज्यों में कम से कम आठ महीने कार्य के अनुकूल मौसम रहता है।”

उन्होंने कहा, “पूर्वोत्तर के इलाके और हिमालय क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में अवसादन और भूस्खलन का खतरा बना रहता है। रेलवे के पास प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए कोई अतिरिक्त एहतियात के उपाय नहीं हैं। काम के लिए समय कम मिलने से रेलवे इंजीनियरिंग व अन्य लोगों के लिए यहां काम करना कठिन हो जाता है।”

उन्होंने बताया कि पूवरेत्तर के इलाके में एक किलोमीटर एकल पटरी बिछाने पर नौ से 12 करोड़ रुपये खर्च होते हैं जबकि मैदानी इलाकों में पांच से छह करोड़ रुपये। पूर्वोत्तर में एक किलोमीटर दोहरी पटरी बिछाने पर 20 से 25 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जबकि मैदानी इलाकों में 10 से 15 करोड़ रुपये।
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पाठक ने कहा, “भूमि अधिग्रहण, वन विभाग की मंजूरी, सिंडिकेट संबंधी समस्या और कुशल श्रमिकों की तलाश पूर्वोत्तर इलाके में रेल पटरी बिछाने के अन्य बाधक तत्व हैं।”

उन्होंने बताया कि एनएफआर को 2020 तक मेघालय की राजधानी शिलांग और सिक्किम की गंगटोक को छोड़ बाकी तीन राजधानी शहरों में रेल पटरी बिछाने में मशक्कत करनी पड़ रही है।

असम की राजधानी गुवाहाटी, त्रिपुरा की अगरतला और अरुणाचल प्रदेश की ईटानगर पहले ही रेलनेटवर्क से जुड़ चुकी है।

उन्होंने कहा, “भूमि से संबंधित समस्याओं को लेकर मेघालय और सिक्किम में रेलवे नेटवर्क का विस्तार नहीं हो पाया है। मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में काम प्रगति में है।”

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