खुलासा : रस्ते का माल सस्ते में बेच रहे बाबा रामदेव, गाय वाले घी के नाम पर खिला रहे…

रामदेव का घी गाय का नहींनई दिल्ली। योग गुरु के नाम से विख्यात बाबा रामदेव देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी धाक जमाए हुए हैं। उनके योग और उसके माध्यम से रोगों को छू-मंतर करने का लोहा भी सभी ने माना है। यही कारण है कि जनता का उनपर अटूट विश्वास है। इतना ही नहीं उन्हें आयुर्वेदिक पद्धतियों को पुनर्जीवन देने का श्रेय भी मिलता है। ऐसे में उन्होंने आयुर्वेद के रास्ते देशी नुस्खों के साथ लोगों को स्वदेशी माल अपनाने के लिए प्रेरित किया और खुद ही स्वदेशी माल निर्माता बन गए।

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उन्होंने न केवल लोगों के बीच स्वदेशी भावना को जगाया बल्कि उसे कैश करने में भी नहीं चूके। अब इस बात पर लोगों में उनका विश्वास बोलता है… ‘चलो इसी बहाने कम से कम शुद्ध चीजें तो मिलीं जिनपर आंख बंद कर भरोसा किया जा सकता है।’

बाबा रामदेव ने लोगों के इस विश्वास को ताक पर रखते हुए अन्य मैन्युफैक्चरर्स की तरह इसे पैसा कमाने का जरिया बना लिया।

आज बाजार में साबुन से लेकर तेल तक बाबा रामदेव की पेटेंट ‘पतंजलि’ टैग के साथ मौजूद हैं। बाबा रामदेव ने शायद ही कोई प्रोडक्ट छोड़ा हो जो इंसान की मुख्य जरूरतों में न आता हो।

उन्‍होंने आयुर्वेद से जुड़ी भारतीयों की भावनाओं को ‘दुह’ कर अपनी संस्‍था पतंजलि आयुर्वेद के लिए खासा मुनाफा बटोरा है। हाल ही में समूह का राजस्‍व 10,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया।

पतंजलि ने आईटीसी, गोदरेज और ब्रिटानिया जैसे नामी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। रामदेव अपने कारोबार को ‘स्‍वदेशी’ बताकर चलाते हैं, जिसके पीछे यह विचार है कि पतंजलि के सभी उत्‍पाद स्‍वदेशी हैं और प्राचीन भारतीय पद्धतियों से बनाये जाते हैं।

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बता दें आर्थिक मामलों की पत्रकार, प्रियंका पाठक-नारायण ने अपनी किताब ‘Godman to Tycoon: the Untold Story of Baba Ramdev’ में बताया है कि इन दावों की हकीकत कुछ अलग है।

किताब में उन्‍होंने पतंजलि के पूर्व सीईओ एसके पात्रा से हुई बातचीत साझा की है, जिसमें वह कहते हैं रामदेव का प्रसिद्ध ‘गाय घी’ असल में गाय का घी है ही नहीं। इस किताब का यह अंश कारवां मैगजीन ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया है।

प्रियंका की किताब के अनुसार, 2013 की शुरुआत तक, पतंजलि की फैक्ट्रियां करीब 500 उत्‍पाद बना रही थीं और कई उत्‍पाद टेस्‍ट किये जा रहे थे। कई उत्‍पादों को खुद रामदेव चेक करते थे।

पात्रा के मुताबिक, शहद को बतौर उत्‍पाद उतारने से पतंजलि को शानदार मुनाफा हुआ। उनके मुताबिक, “हमने कई सप्‍लायर्स से शहद लिया, उसे परिष्‍कृत किया और पतंजलि के लेबल के साथ बेचा। चूंकि पतंजलि का शहद सबसे सस्‍ता था, इसने बाजार में तहलका मचा दिया।” इसी सफलता के बाद पात्रा ने घी को बाजार में उतरने का मन बनाया।

पात्रा के अनुसार, जब वह एक घी-उत्‍पादक से मिले तब उन्‍हें यह एहसास हुआ कि इसकी मांग विस्‍फोटक है।

बकौल पात्रा, “हमें कुछ ही दिन में प्रोडक्‍शन बढ़ाना था। हमने सफेद मक्‍खन ट्रकों में मंगाना शुरू किया। अब, हर दिन पतंजलि करीब 100 टन घी का उत्‍पादन करता है।” क्‍या आप कल्‍पना कर सकते हैं? घी की हर बोतल पतंजलि को पचास या साठ रुपये का मुनाफा दे रही है।

आपको जानकार हैरानी होगी कि पतंजलि जो घी ‘गाय’ का बताकर बेचती है, पात्रा के मुताबिक वह गाय का घी है ही नहीं।

यह असल में सफेद मक्‍खन से बनता है जो कि कई जानवरों के दूध से बनता है, सिर्फ गाय के नहीं। इसके लिए देश के विभिन्‍न हिस्‍सों से छोटे-बड़े उत्‍पादकों से दूध लिया जाता है।

कर्नाटक को-ऑपरेटिव दुग्‍ध उत्‍पादक फेडरेशन का ब्रांड नंदिनी, पंतजलि का सफेद मक्‍खन का सबसे बड़ा सप्‍लायर बताया जाता है।

यह संस्‍था राज्‍य के 22,000 गांवों के 23 लाख उत्‍पादकों से दूध संग्रह करती है, मगर इस आधार पर नहीं कि वह गाय का है या भैंस का, या फिर बकरी का।

पात्रा कहते हैं, “रामदेव दावा करते हैं कि यह सब गाय का घी है, लेकिन किसे पता है कि यह गाय का घी है या भैंस का घी है या फिर बकरी का।”

ख़ास तो यह है कि बाबा रामदेव को भी नहीं पता कि पतंजली टैग के साथ बाजार में बिकने वाला देशी घी आखिर किस जानवर के दूध से बना हुआ है।

इस बात का वे चाह कर पता भी नहीं लगा सकते, लेकिन देशी के नाम पर 1500 करोड़ का कारोबार तो बन ही गया है।

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