मैनपुरी में स्वास्थ्य सेवाओं हाल बदहाल, प्रशासन को नहीं कोई खबर

मैनपुरी-

मैनपुरी में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बदहाल हो चुका है दिन प्रतिदिन ये वद से वदतर यहाँ की सेवाएं हो चुकीं है यहाँ के डॉक्टरों का ईमान पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है मानवीय सम्बेदनाएँ पूरी तरह से मर चुकीं है क्योंकि यहाँ का स्वास्थ्य प्रशासन पूरी तरह से नाकारा हो चुका है.

कोई काम करना नहीं चाहता जब कि प्रदेश सरकार लगातार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के सकारात्मक प्रयास कर रहीं है यहां एक ऐसा मानवीय सम्बेदनाओं को तार-तार करने का मामला संज्ञान में आया है जब एक माँ गम्भीर अवस्था में अपने दिमागी बुखार से पीड़ित 3 साल के मासूम बच्चे को लेकर इलाज के लिए जिला अस्पताल लेकर पहुँचती है.

ब्बेहाल स्वास्थ्य सेवायें

तो उसको कहीं इमर्जेन्सी में ले जाने के लिए बोल दिया जाता है तो कभी 100 शैया मातृ एवं शिशु अस्पताल लेकिन यहाँ से दोवारा उसे ये कहकर भेज दिया जाता है कि यहां 29 दिन के बच्चे को ही भर्ती किया जाता है.

बेचारी लाचार माँ दोबारा अपने मासूम बच्चे को लेकर इमर्जेन्सी पहुँचती है तो उसे ड्यूटी पर तैनात  चिकित्सक  ने 100 सैया चिकित्सालय फिर से  भेज दिया है इस दौरान लगातार बच्चे की हालत इलाज के अभाव में ख़राब होती जा रही है लेकिन उस माँ की सुनने बाला कोई भी चिकित्सक नहीं आया.

पूरा मामला मीडिया के जब संज्ञान में आया और चिकित्सकों से बातचीत की तो तत्काल सीएमएस महिला अस्पताल खुद मौके पर पहुंचते है और उसको इमर्जेन्सी में दाखिल कराते है जिसके बाद उस मासूम का इलाज शुरू होता है. बड़ा प्रश्न ये कि अगर इस दौरान उस मासूम को अगर कुछ हो जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता आखिर कौन इसको तय करेगा.

जनपद मैनपुरी के दन्नाहार थाना क्षेत्र के ग्राम फतेहपुरा निवासी बिजेंद्र की पत्नी रूबी अपने 3 साल के मासूम बच्चे पार्थ को लेकर इसलिए जिलाअस्पताल आती है क्योंकि उस बेचारी का लाल दिमागी बुखार से पीड़ित है उसका शरीर सूजता जा रहा है हालत लगातार नाजुक होती जा रही है.

वो माँ इस आस में थी कि उसका लाल जब अस्पताल में भर्ती हो जाएगा तो उसकी जिन्दगी के ऊपर जो ख़तरा मंडरा रहा है वो कम हो जाएगा और उसके लाल को बेहतर इलाज मिल जाएगा क्योंकि अस्पताल में डॉक्टरों के भेष में भगवान रहते है और यहां का  भगवान उसके लाल को दूसरी जिंदगी दे देगा.

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लेकिन जब वो लाचार और बदहाल माँ अस्पताल पहुँचती है तो उसको ये पता चलता है कि यहां कोई भगवान नहीं वल्कि जल्लाद रहते है क्योंकि यहां उसकी कोई सुनने वाला नहीं क्योंकि उसके पास पैसे नहीं है. क्योंकि वो बेहद ही गरीव है बेचारी माँ की कोई इतनी ऊंची पहुँच भी नहीं कि कोई यहाँ अस्पताल के भगवान से उसकी सिफारिश ही कर दे.

जिसके बाद वो लाचार माँ अपने बच्चे को लेकर एक जगह से दूसरी जगह भेजी जाती रही वो खुद नहीं समझ पा रही थी कि आखिर उसके बच्चे और उसका कसूर क्या है जिसके बाद वो थक हार कर एक जगह बैठ गयी.

पूरे मामले की जानकारी जब मीडिया को हुई तो उसने पहुंचकर पूरा मामला जाना जिसके तत्काल बाद सीएमएस भी मौके पर पहुंचे और उन्होंने खुद उस मासूम को इलाज के लिए इमर्जेन्सी में भेजा तब कहीं जाकर उस मासूम का इलाज शुरू हो सका.

इस पूरे मामले में सीएमएस  का कहना है कि-जैसे ही ये मेरे संज्ञान में पूरा मामला आया वैसे ही खुद हमने अपने स्टाफ के साथ पीड़ित महिला के बच्चे को एडमिट कराया है और में खुद उसको देखने जा रहा हूँ कि उसका इलाज शुरू हुआ या नहीं.

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