मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ‘झटका’ और सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी ‘जीत’

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डदिल्‍ली। इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए एक झटका और सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी जीत कहें तो अतिशयाेक्ति नहीं होगी। मुस्लिम महिलाओं ने बोर्ड का विरोध करके यह अहसास करा दिया है कि वह सर्वोच्‍च अदालत के  साथ हैं।

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दिए गए हलफनामे पर विवाद शुरु हो गया है।

रविवार को जहां फिल्‍म गीतकार जावेद अख्‍तर ने पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना की वहीं मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ता भी मुखर हो गए हैं। उन्‍होने पर्सनल लॉ बोर्ड के इस रुख को गुमराह करने वाला  और इस्‍लाम विरोधी बताया।

महिलाओं ने एक साथ तीन तलाक और बहुविवाह पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि अदालती दखल से महिलाओं को उनके वो अधिकार मिलने चाहिए जो शरीयत एवं कुरान में उनको दिए गए हैं।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ हुईं मुस्लिम महिलाएं

लेखिका और महिला अधिकार कार्यकर्ता नाइस हसन ने कहा, ‘बोर्ड का कहना है कि शरीयत में बदलाव नहीं किया जा सकता, जबकि ऐसा नहीं है। तारीख उठाकर देख लीजिए दुनिया के कई मुस्लिम मुल्कों में तलाक और बहुविवाद से जुड़े शरिया कानूनों में बदलाव हुए हैं। कानून में हालात के मुताबिक बदलाव किए जाते हैं। 1920 के दशक में तुर्की में कमाल अतातुर्क के जमाने में शरिया कानून में बदलाव किए गए थे। ऐसी बहुत सारी मिसालें मिलती हैं।’

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज ने कहा, ‘पर्सनल लॉ बोर्ड ने अदालत के समक्ष जो बातें कीं वो संविधान विरोधी, इस्लाम विरोधी और महिला विरोधी हैं। यह बहुत दुखद स्थिति है। हमारी मांग है कि देश की सबसे अदालत दखल दे और मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाए।’ इस्लामिक नारीवादी शीबा असलम फहमी का कहना है कि बोर्ड ने देश की सबसे बड़ी अदालत में जो पक्ष रखा है तो ‘झूठा और महिला विरोधी’ है।

उन्होंने कहा, ‘पर्सनल लॉ बोर्ड ने जो हलफनामा दिया है उसमें अजीबो-गरीब तर्क दिए हैं। उसका पक्ष झूठा और महिलाओं के खिलाफ है। उसने महिलाओं को कमजोर के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। महिलाएं सिर्फ अपना वो हक मांग रही हैं जो उनको शरीयत और कुरान ने दिए हैं।’

नाइस हसन ने कहा, ‘जिस दौर में चार विवाह की इजाजत दी गई, उस वक्त के हालात कुछ और थे। आज के समय में जब लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या कम है तो फिर ये कैसे संभव है।…महिलाओं को उनका पूरा हक देने के लिए पर्सनल लॉ में बदलाव होना चाहिए।’ एक साथ तीन तलाक के खिलाफ अभियान चला रही सफिया नियाज ने कहा, ‘हम सामाजिक स्तर पर दबाव बनाने के लिए अपना अभियान जारी रखेंगे। हमने इसपर पहले ही 50 हजार महिलाओं के हस्ताक्षर लिए हैं और आगे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इस मुहिम में जोड़ने की कोशिश करेंगे।’

बता दें कि पर्सनल लॉ बोर्ड ने बीते शनिवार को उच्चतम न्यायालय में तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाओं द्वारा कथित लैंगिक भेदभाव सहित कई मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि सामाजिक सुधार के नाम पर किसी समुदाय के पर्सनल कानूनों को ‘फिर से नहीं लिखा’ जा सकता। बोर्ड ने शीर्ष अदालत में अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि बहुविवाह, तीन बार तलाक (तलाक ए बिद्दत) और निकाह हलाला की मुस्लिम परंपराओं से संबंधित विवादित मुद्दे ‘विधायी नीति’ के मामले हैं और इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

LIVE TV