मिथिला के कांवड़िये ‘पाग’ पहन पहुंचेंगे बाबा धाम

 

कांवड़िये

मधुबनी। बिहार के सुल्तानगंज से देवघर यानी बाबा बैद्यनाथ धाम भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए मिथिला के कांवड़िये इस बार सावन में नए रूप में दिखेंगे। ये कांवड़िये गेरुआ रंग की पोशाक के साथ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान ‘पाग’ भी सिर पर धारण करेंगे।

मिथिलालोक फाउंडेशन के संस्थापक डॉ़ बीरबल झा ने मिथिला क्षेत्र से देवघर जाने वाले कांवड़ियों से पाग पहनकर बाबाधाम जाने की अपील की है। उन्होंने सोमवार को मधुबनी में ‘पाग कांवड़िया’ कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम में ‘पाग कांवड़िया गीत’ की सीडी भी जारी की गई।

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डॉ़ झा ने बताया कि इस गीत के माध्यम से कांवड़िये भगवान शिव से यह विनती करेंगे कि जिस मिथिला में वे कभी महाकवि विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर उगना के रूप में उनकी सेवा करने आए थे, उस मिथिला की दिशा और दशा बदलने के लिए भोले बाबा अपनी कृपादृष्टि एक बार फिर उस भूभाग पर डालें, जिससे सीता अवतरित हुई थीं।

टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप ‘पाग’ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है। मिथिलालोक फाउंडेशन देश की राजधानी दिल्ली से ‘पाग बचाउ अभियान’ की शुरुआत इसी साल फरवरी मेंकर चुका है। दिल्ली में रहने वाले मैथिली भाषी प्रवासियों ने आईटीओ इलाके में पाग मार्च किया था। जगह-जगह पाग मार्च निकालने का सिलसिला जारी है।

इस वर्ष श्रावण मास 19 जुलाई से शुरू हो रहा है। सावन के महीने में सुल्तानगंज से जल लेकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है। मिथिला सहित देशभर से लाखों की संख्या में शिवभक्त कांवड़ लेकर देवघर जाते हैं। इस बार पागधारी कावड़ियों का जत्था विशेष आकर्षण होगा।

पागधारी कांवड़ियों के लिए डॉ. बीरबल झा ने एक विशेष गीत मैथिली में लिखा है, जिसे स्वर एवं संगीत मिथिला के चर्चित गायक विकास झा ने दिया है। गीत के बोल हैं- ‘हे भोलाबाबा यौ, हम कांवड़िया आबि रहल छी मिथिलाधाम स’, पाग पहिर क’ मिथिलागाम स’..पाग हमर पहिचान यौ..।” यह गीत आजकल सोशल मीडिया पर खूब प्रचलित है।

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