
गोपाल शुक्ला।
भारत वसुधैव कुटुम्बकम वाला देश है। फिर भी बीते कई महीनों से भारत में सहिष्णुता पर कुछ ज़्यादा ही चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया में भी यह मुद्दा बना ही रहता है। नेता से लेकर अभिनेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। सहिष्णुता-असहिष्णुता को लेकर कई विवाद भी हुए। पर ज़्यादातर लोगों का मानना है कि भारतीय समाज में सहिष्णुता कूट कूट कर भरी हुई है।
भारत में सहिष्णुता साबित करने की जरूरत नहीं, इतिहास इससे पटा पड़ा है। आज हम आपके सामने एक ऐसे राजा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में जानकर आपको भारतीय सभ्यता पर गर्व होगा।
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया था … सबसे खराब हालत पोलैंड की थी ..क्योकि पोलैंड ब्रिटेन को जीतने के लिए जर्मनी को पोलैंड को जितना जरूरी था ..पोलैंड पर रूस अमेरिका ब्रिटेन और जर्मनी जापान आदि देशों की सेनाओं ने कब्जे के लिए हमला बोल दिया ..
पोलैंड के सैनिको ने अपने 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक शिप में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया.. और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ.. जहाँ इन्हें शरण मिल सके ..अगर जिन्दगी रही.. हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे ..
पांच सौ शरणार्थी पोलिस महिलाओं और दो सौ बच्चों से भरा वो जहाज ईरान के इस्फहान बंदरगाह पहुंचा.. वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली..फिर सेशेल्स..और इसके बाद अदन में भी अनुमति नही मिली।
अंत में समुद्र में भटकता भटकता वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया… जामनगर के तत्कालीन महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ पांच सौ महिलाओ बच्चो के लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया…बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कुल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की.. ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे..
उन्हीं शरणार्थी बच्चों में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना.. आज भी हर साल उन शरणार्थीयों के वंशज जामनगर आते हैं और अपने पूर्वजो को याद करते हैं.. उनके फोटो और नाम सब रखे हुए है…