क्या है गुरु प्रदोष व्रत का धर्म के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

प्रदोष व्रत। यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। यह व्रत हर महीने दो बार मनाया जाता है एक महीने के शुक्ल पक्ष में तो दूसरा महीने के कृष्ण पक्ष में। दोनों ही बार यह व्रत त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इस बार यह व्रत आज यानि कि गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जा रहा है।

भगवान शिव

इस व्रत की पूजा शाम को की जाती है। इसलिए आज शाम को भगवान की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दो भी व्रत रखता है उसकी हर समस्या का नाश होता है उसके जीवन के हर कष्ट से उसे मुक्ति मिल जाती है।

शुभ मुहूर्त

माघ मास का ये आखिरी प्रदोष व्रत है। माघ के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत रात 8.23 बजे से हो रही है। इस लिहाज से पूजा का मुहूर्त रात 8.23 बजे से 9.05 बजे तक का होगा।

भगवान की पूजा हालांकि सूर्यास्त से पहले ही शुरू करें। बता दें कि त्रयोदशी तिथि का समापन 7 फरवरी को शाम 6.31 बजे हो रहा है। इसके बाद चतुर्दशी की शुरुआत हो जाएगी।

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महत्व

मान्यताओं के अनुसार हर मास के पक्षों में जिस दिन भी प्रदोष व्रत पड़ता है, उसकी महिमा दिन के हिसाब से अलग-अलग होती है। सभी का महत्व और लाभ भी अलग-अलग होता है। वैसे तो हर दिन का प्रदोष शुभ है लेकिन कुछ विशेष दिन बेहद शुभ और लाभदायी माने जाते हैं।

इसमें सोमवार को आने वाले प्रदोष, मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष और शनिवार को पड़ने वाले शनि प्रदोष का महत्व अधिक है। ऐसे ही रविवार के प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष और बुधवार के प्रदोष व्रत को सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। गुरुवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष कहा जाता है। शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष को भ्रुगुवारा प्रदोष कहते हैं।

 

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