पाकिस्तान के रक्षा दिवस पर दुनिया के सामने आया उसका नापाक चेहरा
दिल्ली। पाकिस्तान के रक्षा दिवस के मौके पर उसके यहां के प्रमुख अखबार डॉन ने उसकी हकीकत पूरी दुनिया के सामने ला दी। इस अखबार में छपे लेख से यह भी साबित हो गया है कि पाकिस्तान अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा भारत के विरुद्ध खर्च करता है । भारत के खिलाफ आतंक को पनाह देने और उसे प्रयोग करने में उसका पूरा अमला और खास वर्ग लगा हुआ है। अखबार में यह लेख पाकिस्तानी बुद्धिजीवी मुर्तजा हैदर ने लिखा है।
भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे के बाद से चली आ रही तनानती से किसको ज्यादा नुकसान हुआ है ? मुर्तजा हैदर की मानें तो भारत से लड़ाई करने की बजाय पाकिस्तान का अपने समाज को बचाना ज्यादा जरूरी है।
मुर्तजा लिखते हैं कि ”इस रक्षा दिवस पर, हमें पाकिस्तान की दो परस्पर विरोधी तस्वीरें देखनी चाहिए। एक तरफ वे लोग हैं तो गेट लगी सोसायटी में रहते हैं, सुरक्षित हैं, अच्छा खाते हैं। जबकि दूसरी तरफ हिंसा झेल रहे लोग हैं, जो न तो अपने परिवार की रक्षा कर पा रहे हैं, न उनका पेट भर पा रहे हैं, उनके पास बेहतर भविष्य की कोई उम्मीद नहीं है।”
हैदर लिखते हैं कि ‘पाकिस्तान के सबसे निचले तबके की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। मानव पूंजी में निवेश और बड़े पैमाने पर रोजगार के बारे में कोई चिंता नहीं करता। उन्हें विकास सिर्फ संकरी और खुद को नफा पहुंचाने वाले मोटवे और ट्रेड कॉरिडोर में दिखता है।’
मुर्तजा हैदर लिखते हैं, ”भारत के खिलाफ 1965 की जंग में मुल्क की सरहद बचाने वालों के त्याग को याद करने के लिए आज पाकिस्तान रक्षा दिवस मना रहा है। लेकिन सीमा बचाने से ज्यादा जरूरी है कि सीमाओं के भीतर रहने वाले समाज को ऊपर उठाया जाए।”
हैदर ने पाकिस्तान के कुलीन वर्ग की तीखी आलोचना की है। उन्होंने पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के मुखिया रहे मार्क आंद्रे फ्रांच और हंस वोन स्पोनेक के हवाले से लिखा है कि यहां का कुलीन वर्ग संसाधनों पर कुंडली मारकर बैठा हुआ है।
फ्रांच पिछले महीने तक UNDP के चीफ थे। पद से हटने से पहले आखिरी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ”आपके यहां ऐसे कुलीन लोग नहीं होने चाहिए जो पैसा बनाने के लिए बेहद सस्ते और अनपढ़ मजदूरों का फायदा उठाते हैं। जब पार्टी करने का वक्त आता है तो वे लंदन में होते हैं, और जब कुछ खरीदना होता है तो दुबई चले जाते हैं। जब बात प्रॉपर्टी में निवेश की आती है तो वे (कुलीन वर्ग) दुबई या यूरोप या न्यू यॉर्क को चुनते हैं। कुलीन वर्ग को यह तय करना होगा कि उन्हें एक देश चाहिए या नहीं।”