पराली निस्तारण का मॉडल बनाने पर गोण्डा के शिक्षक को मिला राज्य स्तरीय पुरस्कार

Report:- Vishal Singh/Gonda

पराली निस्तारण का मॉडल बनाने पर गोण्डा के शिक्षक को राज्य स्तरीय पुरस्कार मिला है। गोण्डा जनपद के एक शिक्षक को पराली निस्तारण का रोल मॉडल बनाने पर राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा गया है। किसानों को फसल कटने के बाद खेतों की तत्काल बुवाई करने के लिए फसलों के अवशेष उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि किसानों को पराली का कैसे निस्तारण किया जाए इसकी जानकारी नहीं है।

पर्यावरण की सुरक्षा एवं किसानों के पराली निस्तारण को लेकर चिंतित एक शिक्षक ने मेरठ में आयोजित 47वीं जवाहरलाल नेहरू राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में पराली निस्तारण का अचूक मॉडल पेशकर कृषि वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया. अपने मॉडल के जरिए शिक्षक ने यह साबित कर दिया की पराली किसानों के लिए बेकार नहीं बल्कि सोना है।

शिक्षक को मिला सम्मान

मुख्यालय के फखरुद्दीन अली अहमद राजकीय इंटर कॉलेज में तैनात विज्ञान शिक्षक अशोक पांडे ने किसानों के लिए पराली निस्तारण का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है जो वास्तव में किसानों के लिए वरदान साबित होगा। उनका मानना है कि अगर किसानों को इस बात की जानकारी हो जाए कि फसलों के अवशेष उनके लिए बेकार नहीं बल्कि सोना है तो इनका उपयोग वह पशुओं के चारा व जैविक खाद के रूप में कैसे कर सकते हैं तो किसान स्वतः खेतों में फसल के अवशेष को नहीं जलाएंगे .

कारण फसलों का अवशेष जलाने से किसानों को होने वाले नुकसान की भी जानकारी नहीं है. खेतों में फसलों का अवशेष जलाने से जहां मिट्टी खड़ी हो जाती है वही मिट्टी के कई परतों तक पानी भी सूख जाता है। ऐसे में किसानों के लिए लाभदायक जीवाणु मसलन राइजोबियम वेक्टर जैसे जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जो वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्राइट व नाइट्रेट में परिवर्तित कर पौधों को ग्रहण करने में मदद करते हैं.

साथ ही साथ फसलों के अवशेष से निकलने वाला धुआं वायुमंडल को प्रदूषित करता है जिसका सीधा असर जन स्वास्थ्य पर पड़ता है. तमाम लोग प्रदूषण के कारण ही आंख और अस्थमा जैसे रोगों के शिकार हो जाते हैं। इस मॉडल के मुताबिक किसानों को फसलों के अवशेष को खेतों में बराबर फैलाकर 2 किलोग्राम प्रति बीघा यूरिया का छिड़काव कर दें जिससे फसलों के अवशेष स्वतः सड़ने लगेंगे फिर खेतों की जुदाई रोटावेटर से करें.

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ऐसे में अवशेष सडकर कार्बनिक खादों का काम करेंगे तथा खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी और नमी भी बराबर बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त किसानों को धान की फसल कटने के बाद यदि गेहूं की बुवाई करनी है तो वह सीड ड्रिल से खेत की बिना जुताई किए पौधों के रिक्त वाले स्थान में गेहूं की बुवाई कर सकते हैं फिर बुवाई करने के बाद अवशेष को बराबर फैला दें।

फसलों के अवशेष से कैसे बनाएं साइलेज यह भी बताते हुए शिक्षक ने कहा कि किसान चाहे तो फसलों के अवशेष को इकट्ठा कर 100 लीटर पानी में 2 किलोग्राम यूरिया डालकर 1 सप्ताह तक अवशेष पर छिड़काव करें फिर जब वह सड़ने लगे तब उसे चारा मशीन से छोटे-छोटे टुकड़े काट लें। इस साइलेज को भूसा आदि में मिलाकर जानवरों को खिलाएं इसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाएगी जानवर इसे खूब खाएंगे।

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