
लखनऊ। मायावती की दुविधा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में अब कुछ ही घंटे की देरी है। मतदाता अब सीन से आउट हो चुके हैं। अब बारी है सियासी दलों की जो अपने नफा नुकसान का आंकलन कर जनता से किए अपने वादों के उलट कोई भी फैसला कर सकते हैं। एगि्जट पोल के सर्वे आने के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री अखिलेश के चेहरे की हवाइयां उड़ी और उन्होंने बसपा के साथ जाने का ऐलान किया।
इस ऐलान से सपा और बसपा के गठबंधन की चर्चा फिर गर्मी लाने लगी है। सवाल भी उठ रहे हैं कि ऐसा हुआ तो बबुआ और बुआ का यह साथ कब तक चलेगा। क्या बुआ बबुआ के पिता के दिए दर्द गेस्ट हाउस कांड को भूल जाएंगी। लेकिन राजनीति में सब चलता है। बहरहाल, प्रदेश की सियासत में ऐसी बातें नई नहीं हैं। ऐसे में गेस्ट हाउस कांड का संस्मरण करना जरूरी है।
गेस्ट हाउस कांड का वाकया 22 साल पुराना है, जिसे प्रदेश की राजनीति के इतिहास में दो जून 1995 को काला दिन के नाम से जाना जाता है। गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाने जाने वाले इस मामले में अराजकता तब चरम पर पहुंच गई थी जब दलित नेता मायावती उन्मादी भीड़ के चंगुल में फंस चुकी थीं। यह सब तब हुआ जब मायावती ने मुलायम सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था।
1993 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद समाजदवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ था। चुनाव में गठबंधन को जीत हासिल हुई थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे। मतभेद के कारण बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और मुलायम की सरकार संकट में आ गई। सरकार बचाने के प्रयास विफल हुए तो सपा के कार्यकर्ता आक्रोशित होकर लखनऊ के मीराबाई मार्ग पर िस्थत स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचे।
यहीं पर बसपा की मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं। बताया जाता है कि उन्मादी भीड़ उनके रूम में घुस गई। उनके साथ मारपीट की व कपड़े भी फाड़ दिए। तब फ़र्रुखाबाद के भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने अपनी जान पर खेलकर मायावती को बचाया और गेस्ट हाउस से उनको सुरक्षित बाहर निकलवाकर ले गए। इसे ही गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है।
मायावती ने भी द्विवेदी का हमेशा दिया साथ
इस घटना के बाद मायावती ने द्विवेदी को बड़े भाई तुल्य माना और उनके सम्मान में कभी भी उनके खिलाफ अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया। उनके प्रति मायावती के आभार का ये आलम था कि भले ही वे प्रदेश में भाजपा का विरोध करतीं रही हों, लेकिन फर्रूखाबाद में तो वे द्विवेदी के पक्ष में ही प्रचार किया करती थीं।
कुछ समय बाद एक गोलीकांड में द्विवेदी की हत्या हो गई। इससे मायावती बेहद दुखी हुईं। बाद में उन्होंने द्विवेदी की विधवा के लिए भी जनता से सहयोग की अपील की।
आरोपी को ही टिकट देने पर विवाद
मायावती 2009 में तब फिर विवादों में आई जब उन्होंने गेस्ट हाउस कांड के एक आरोपी को ही टिकट दे दिया। उस हमले में सपा कार्यकर्ता शामिल थे और एक हमलावर अन्ना शुक्ला था। अन्ना एक कुख्यात गैंगस्टर रहा था और कई बार जेल भी जा चुका था। दिसंबर 2008 में वह बसपा में शामिल हो गया था। इसके बाद मायावती ने राजनीति में मुड़कर नहीं देखा वह चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री पद पर रहीं।