तेलुगु देशम पार्टी के 6 में से 4 राज्यसभा सांसदों ने छोड़ा पद, बीजेपी में हुए शामिल

लोकसभा के चुनाव में मोदी की सुनामी चली. और ऐसी चली कि सभी अनुमानों को धता बताते हुए भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज कर ली. भाजपा की बंपर जीत ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है. दिन ब दिन राजनीति घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के 6 में से 4 राज्यसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ दी है. इन सभी ने भाजपा का दामन थाम लिया है.

तेलुगु देशम पार्टी

एक समय था जब आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू की तूती बोलती थी. आज वे छुट्टियां मनाने विदेश क्या गए, उनकी पार्टी में मानो भूचाल आ गया. जी हां, टीटीपी के 4 राज्यसभा सांसद भाजपा में शामिल हो गए. इनमें सांसद सीएम रमेश, टीजी वेंटकेश, जी मोहन राव और वाईएस चौधरी शामिल हैं.

इन चारों सांसदों ने राज्यसभा में टीडीपी के भारतीय जनता पार्टी में विलय का प्रस्ताव पास किया और इसकी जानकारी राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को दी. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा पर निशाना साधा है और कहा कि टीडीपी को कमजोर करने की भाजपा के प्रयासों की वे निंदा करते हैं.

सिर्फ 28 साल की उम्र में बने विधायक

चंद्रबाबू नायडू की स्कूली शिक्षा चंद्रागिरी और सेशापुरम में हुई. उन्होंने तिरुपति के एसवीआर्ट्स कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की. कॉलेज के दिनों से उन्हें राजनीति से जुड़े कामों में दिलचस्पी थी. अपनी काबिलियत के कारण वे बहुत जल्द लोकल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. उन्होंने 1978 में चित्तूर विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा और जीत गए. फिर वे कैबिनेट मंत्री भी बने.

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1995 में पहली बार बने मुख्यमंत्री

चंद्रबाबू नायडू को आंध्र प्रदेश के विकास का नायक माना जाता है. 20 अप्रैल 1950 को चित्तूर के किसान परिवार में जन्म लेने वाले चंद्रबाबू नायडू 1995 में पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वह 1995 से 2004 तक अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. नायडू विभाजन के बाद भी आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने.

2014 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 175 में 102 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि 2019 के विधानसभा चुनावों में टीडीपी ने प्रदेश की 175 सीटों में से महज 23 सीटें ही जीतीं, जबकि सबसे ज्यादा सीटें 151 सीटें वाईएसआर कांग्रेस के खाते में आईं. मानो यहीं से नायडू की किस्मत ने पलटा खाया और अब नतीजा आपके सामने है.

सीएम के रूप में बनाई विशेष पहचान

नायडू जब 1995 में मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपनी पहचान एक टेक सेवी सीएम के रूप में बनाई. वे आंध्र प्रदेश के लिए विजन 2020 लेकर आए. विजिन डॉक्यूमेंट का मकसद था 2020 तक आंध्र प्रदेश को बदलाव के राह पर लाना. उन्होंने 8 साल तक सीएम रहते इसका काफी काम पूरा भी किया. उनके कार्यकाल में हैदराबाद में कई आईटी कंपनियां स्थापित हुईं. चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को 1999 में बड़ी जीत मिली. लेकिन इसके बाद 2004 में टीडीपी को बड़ा झटका लगा और सिर्फ 49 सीटों पर जीत मिली. 2009 के चुनावों मे थोड़ा सुधार हुआ लेकिन 2014 के चुनाव में टीडीपी ने वापसी की और फिर सरकार बनाई. लेकिन 2019 में वापस करारी हार का सामना करना पड़ा.

जब नायडू ने एनडीए से खींचा हाथ

चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए से अपना हाथ खींच लिया. केंद्र सरकार से अपने मंत्रियों के इस्तीफे दिलाए. उन्होंने कहा था कि वे 29 बार प्रधानमंत्री से मिलने के लिए दिल्ली आए, लेकिन उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया. वे आंध्र प्रदेश के लिए केंद्र से आर्थिक मदद की गुहार लगा रहे थे. लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी.

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जानकारों का मानना था कि वे विपक्ष के साथ मिलकर अपनी भूमिका तलाश रहे थे. लोकसभा चुनावों से पहले जब गठबंधन में भावी प्रधानमंत्रियों के नाम लिए जा रहे थे तो उसमें चंद्रबाबू का नाम भी शामिल था. लेकिन समय ऐसे बदला कि पहले विधानसभा चुनाव में करारी हार मिली और अब अपने ही नेताओं ने साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

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