मोदी का सपना यूपी के इस गांव में हो रहा पूरा

डिजिटल गांवलखनऊ। सोचिए, भारत में एक ऐसा डिजिटल गांव भी हो, जहां लोगों को सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी वाट्सऐप पर मिल जाए। गांव की अपनी वेबसाइट हो। एक मोबाइल ऐप भी हो। एक टोलफ्री नंबर हो और यह गांव पूरा वाईफाई हो।

कोई सुनेगा तो कहेगा कि भारत में ऐसा डिजिटल गांव नहीं हो सकता। हां, ऐसे गांव के सपने जरूर देखे जा सकते हैं। लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि यह सपना हकीकत बन चुका है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक ‘बेटी’ ने इस सपने को सच कर दिखाया है। लतीफपुर गांव की श्‍वेता की सात साल की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि आज उनका गांव डिजिटल हो गया है और दुनिया के मानचित्र पर दिखने लगा है।

यूपी में लखनऊ में पास मौजूद लतीफपुर गांव में सरकारी योजनाओं की जानकारी वाट्सऐप ग्रुप ‘डिजिटल लतीफपुर’ पर शेयर होती है।

शनिवार को इस ग्रुप में मैसेज वायरल हुआ, ‘राशनकार्ड की तीसरी सूची कोटेदार को भेज दी गई है। इसमें 17 लोगों के नाम हैं। कल चार बजे इस लिस्ट में अपने नाम कंफर्म कर लें।’ आज यानी रविवार से 17 परिवारों को उनका हक आसानी से मिलने लगेगा।

लतीफपुर की प्रधान श्‍वेता यूपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर की रहने वाली हैं। लतीफपुर उनका ससुराल है। एमसीए डिग्री हासिल करने के बाद श्‍वेता ने कई नौकरियां कीं। लेकिन मन की खुशी अब गांव की तरक्की में मिल रही है।

श्‍वेता बताती हैं, ‘हमने चार वाट्सऐप ग्रुप बनाए हैं। इन गांववालों के साथ ही सरकारी अमले के जिम्मेदार लोग हैं। कोई भी समस्या ग्रुप पर आती है तो निदान के बाद ही उस पर बात खत्म होती है।’

गांव के किसी घर का खराब हैंडपम्प हो या पेंशन न मिल रही हो। बस, इन वाट्सऐप ग्रुप पर अपनी समस्या लिख दीजिए और जल्दी से जल्दी समाधान आपके सामने होगा।

गांव की मुश्किलों से निपटने के लिए श्‍वेता ने www.digitallatifpur.com वेबसाइट शुरू की है। इस पर गांव की जानकारियां, मसलन-पेंशन, प्रमाणपत्र, आबादी और सरकारी योजनाओं का पूरा ब्योरा होगा।

लतीफपुर ग्राम पंचायत को अब वाईफाई करने की तैयारी चल रही है। इसके साथ ही गांव में पहली बार सरकारी पैसे पर कम्प्यूटर भी लाए जाएंगे। गांव के डिजिटल विकास के लिए श्‍वेता आरटीआई का भी सहारा लेती हैं।

वह बताती हैं, ‘प्रदेश में पहली बार लतीफपुर में ग्राम पंचायत के पैसे से हैण्‍डपम्प लगवाए गए। रिबोर भी हुए। इसके लिए हमने प्रमुख सचिव से आरटीआई के जरिए पूछा कि क्या ग्राम पंचायत यह कदम उठा सकती है।’

श्‍वेता बताती हैं, ‘डिजिटल न होने और अधूरी जानकारी से गांवों की तरक्की रुकी है। ग्राम पंचायतों के हक उन्हें पता ही नहीं। हमें भी नहीं पता थे। लेकिन आरटीआई के जरिए अब हम भी जागरूक हो रहे हैं।’

यह आरटीआई का ही कमाल था कि यूपी के इस गांव में पहली बार मनरेगा के जरिए इंटरलॉकिंग सड़क बनी। श्वेता के मुताबिक साल 2013 में सरकार ने यह आदेश दिया था, लेकिन जानकारी गांवों तक नहीं पहुंची थी।

श्‍वेता ने डिजिटल गांव को पेपरलेस करने की नई पहल भी शुरू की है। इसके साथ ही पहली बार ग्राम पंचायत की ओर से करीब साढ़े 13 करोड़ का कॉर्पोरेट प्लान भी शासन को भेजा गया है।

अगर श्‍वेता की दोनों कोशिशें सफल हुईं तो लतीफपुर देश का पहला पेपरलेस गांव बन जाएगा। यह अकेला डिजिटल गांव होगा, जो कॉर्पोरेट सिस्टम से चलेगा।

फिलहाल लतीफपुर का सारा सरकारी काम वेबसाइट पर अपलोड करने की कवायद चल रही है। यहां के खर्चों का ब्योरा आपको कागज पर नहीं, कम्प्यूटर पर मिलेगा। टैली के जरिए हर बजट की अलग लिस्टिंग की गई है।

अपने शुरुआती दिनों के बारे में श्‍वेता बताती हैं, ‘साल 2008 में मेरी शादी हुई। मैं एक अमीर परिवार से हूं। कभी गांव नहीं देखा था। लेकिन शादी के बाद पहली बार गांव आई। यहां के हालात देखकर हैरान थी।’

श्‍वेता के मुताबिक गांव में सुविधाओं का टोटा था। कोई सुनने वाला नहीं था। गांव के प्रधान को न अपने हक पता थे न लोगों को हुकूक दिलाने का सलीका।

गांव की तरक्की के लिए उनके सास, ससुर, पति और जेठ ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए। श्‍वेता ने इसकी वजह तलाशी। उन्हें लगा कि गांववालों की मुश्किलों को सिर्फ समझना नहीं होगा, इससे निपटकर दिखाना होगा।

उन दिनों गांव के लोग आर्थिक तंगी से परेशान थे। किसी को जमीन बेचनी पड़ रही थी तो किसी को घर के जेवर। श्‍वेता ने इस समस्या का निदान निकालने का अनूठा तरीका खोजा।

उन्होंने गांववालों के साथ मिलकर एक फंड बनाया। इसमें गांव के लोगों ने अपना थोड़ा-थोड़ा पैसा डाला। अब गांव के किसी परिवार को किसी तरह दिक्कत आती तो इसी फंड से पैसे निकाले जाते।

दिक्कत दूर होने पर इस फंड में धीरे-धीरे पैसे लौटा दिए जाते। यह तरीका कारगर साबित हुआ और श्‍वेता के लिए मील का पत्थर भी। गांववालों का विश्‍वास बढ़ता रहा। लेकिन श्‍वेता प्रधान काफी देर बाद बनीं।

श्‍वेता मानती हैं कि इससे पहले तक गांववालों को हर जगह से निराशा मिली, शायद इसीलिए एक शहर की लड़की पर विश्‍वास जताने में भी वक्त लगा। साल 2015 में श्‍वेता पहली बार गांव की प्रधान चुनी गईं।

गांव के फंड के बारे में श्‍वेता बताती हैं, ‘उस दिन से आज तक गांव में किसी को जमीन या जेवर नहीं बेचने पड़े। मेरे लिए यह सबसे बड़ी जीत है।’

डिजिटल गांव बनाने का असर

लतीफपुर पहली ग्राम पंचायत है, जहां मनरेगा से 300 मीटर सड़क की इंटरलॉकिंग हो चुकी है। छोटे-बड़े 32 रास्ते भी बन चुके हैं। वित्त आयोग से मिलने वाली रकम से हैंडपंप और रीबोरिंग हुई। 24 खराब हैंडपंपों में 19 ठीक हो चुके हैं। पांच साल की कार्य योजना का ड्राफ्ट सबसे पहले विकास भवन को भेजा है। यहां महीने में 20 दिन राशन बंटता है। अब वह गांव का डिजिटल मैप भी बनवा रही हैं।

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