जानें क्या है वरुथिनी एकादशी, जानें पूजा का महत्व और मनाने का तरीका…

शनिवार, 18 अप्रैल को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य का अध्याय है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सालभर की सभी एकादशियों का महत्व बताया है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत करने की परंपरा है। इस दिन बाल गोपाल को भी माखन-मिश्री का भोग लगाना चाहिए। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। एकादशी पर सूर्यास्त के बाद श्रीहरि और तुलसी की पूजा करनी चाहिए।

वरुथिनी एकादशी

दीपक जलाएं और परिक्रमा करें

एकादशी की शाम तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करनी चाहिए। ध्यान रखें सूर्यास्त के बाद तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। पूजा में शालिग्राम भी रखना चाहिए। तुलसी और शालिग्राम को फूल, वस्त्र अर्पित करें। फलों का भोग लगाएं। तुलसी के सामने बैठकर तुलसी की माला से मंत्र जाप करें। जाप की संख्या 108 होनी चाहिए। मंत्र- ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

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शिवलिंग का अभिषेक करें

एकादशी पर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। पंचामृत चढ़ाएं। पंचामृत बनाने के लिए दूध, दही, घी, शहद और मिश्री को मिलाएं और शिवलिंग पर अर्पित करें। दीपक जलाकर ऊँ नम शिवाय मंत्र का जाप 108 बार करें। एकादशी पर जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए।

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