इस लोकसभा क्षेत्र के बारे में यह मिथक माना जाता है कि यहां जिसे सांसद चुन लिया जाता है, वो दोबारा सांसद नहीं बन पाता। हालांकि हरिद्वार सीट से लगातार तीन चुनाव जीतकर संसद पहुंचे भाजपा सांसद हरपाल सिंह साथी ने इस मिथक को गलत साबित किया।
सियासी जानकार हरपाल को इसका अपवाद मानते हैं। हरिद्वार ही वो सीट है जहां बसपा की सुप्रीमो बनने से पहले मायावती ने लगातार दो चुनाव हारे। वे 1989 और 1991 में इस सीट पर बसपा से चुनाव लड़ीं और तीसरे स्थान पर रहीं।
कांग्रेस चार बार, जबकि भाजपा पांच बार विजयी रही
कांग्रेस और भाजपा की चुनावी जंग का अखाड़ा रही इस सीट पर कांग्रेस चार बार चुनाव जीती, जबकि भाजपा पांच बार विजयी रही। 1971 से अस्तित्व में आई ये सीट 2004 के लोकसभा चुनाव तक अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार के लिए सुरक्षित रही।
2009 के चुनाव में ये सीट सामान्य हो गई। 1991 तक इस सीट पर ये मिथक भी रहा कि यहां के मतदाता एक बार जिस प्रत्याशी को चुनते हैं, दूसरी बार वो सांसद नहीं बन पाता। 1971 में कांग्रेस के मुल्की राज चुने गए तो 1977 में बीएलडी के भगवानदास ने चुनाव जीता था।
हरपाल सिंह साथी ने इस मिथक गलत साबित किया
1980 जेएनपी (एस) जगपाल सिंह सांसद बने तो 1984 में वोटरों ने कांग्रेस के सुंदरलाल को चुनकर भेजा। 1989 में कांग्रेस के जगपाल सिंह चुने गए तो 1991 में भाजपा के रामसिंह निर्वाचित हुए। लेकिन 1996, 1998 और 1999 में लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद हरपाल सिंह साथी ने इस मिथक गलत साबित किया।
2004 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बॉडी सांसद चुने गए। 2009 के चुनाव आए तो हरिद्वार के मतदाताओं ने कांग्रेस के हरीश रावत को संसद में भेजा। 2014 के चुनाव में उन्होंने भाजपा के डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को चुना। राज्य गठन के बाद एक बार फिर इस सीट पर मिथक के चर्चे हैं।
भौगोलिक स्वरूप: हरिद्वार पूर्ण रूप से मैदानी सीट है। यहां 60 फीसद आबादी (मतदाता) ग्रामीण है, जबकि 40 फीसद शहरी है। इस चुनाव क्षेत्र देहरादून जनपद की तीन विधानसभा धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश शामिल हैं।
ये विधानसभा क्षेत्र हैं शामिल: धर्मपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, हरिद्वार, ज्वालापुर, बीएचएल रानीपुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरानकलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण
जातीय समीकरण (प्रतिशत में)
ठाकुर 25
ब्राह्मण 22
एसी व एसटी 22
मुस्लिम 26
अन्य 05