उत्तराखंड में बारिश ना होने के कारण बिगड़े हालात, इतने हेक्टेयर भूमि में बर्बाद होने लगी फसल

सर्दियों की बारिश न होने से कुमाऊं में सूखे जैसे हालात हैं। सिंचाई के अभाव में मंडल में दो लाख 13 हजार 989 हेक्टेयर भूमि पर रबी की फसल बर्बादी के कगार पर है।

उत्तराखंड

खेतों में नमी न होने का सबसे अधिक असर गेहूं पर पड़ा है। जल्द बारिश न हुई तो फसल की बर्बादी के बाद काश्तकारों की रोजी-रोटी पर संकट तय है।

कुमाऊं के पांच पर्वतीय जिलों में अल्मोड़ा में 68 हजार, नैनीताल में 17500, बागेश्वर में 36000, चंपावत में 80489 और पिथौरागढ़ में 12000 हेक्टेयर भूमि असिंचित है। यहां गेहूं, मसूर, जौ, मटर, तोरिया, लाही आदि की बुवाई हुई है।

सिंचाई के अभाव में अल्मोड़ा जिले में फसलों के अंकुरण और जमाव पर असर पड़ा है। भिकियासैण और ताड़ीखेत ब्लाक में फसलें अधिक प्रभावित हैं। नैनीताल जिले में 16 हजार हेक्टेयर भूमि में फसलें मुरझाने लगी है।

रामगढ़ ब्लाक में सेब, आड़ू, नाशपाती, पूलम और खुमानी भी इससे प्रभावित है। बागेश्वर जिले में ही 50 हजार से अधिक काश्तकारों की रबी की फसल चौपट होने को है।

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चंपावत में ज्यादातर जगह गेहूं जमा ही नहीं, जहां जमा भी वहां पौधों की बढ़त थम गई। पालक, मेथी, राई, धनियां और प्याज की फसलें भी सूखे से प्रभावित हैं।

पिथौरागढ़ जिले में 22 हजार हेक्टेयर भूमि में गेहूं की बुवाई होती थी लेकिन इस बार बारिश न होने के कारण कई काश्तकारों ने गेहूं की बुवाई ही नहीं की।

जिन काश्तकारों ने गेहूं बोए उनके खेतों में बीज अंकुरित तक नहीं हुए। जहां अंकुरण हुआ वहां पौध पीली पड़ने लगी। ऊधमसिंह नगर जिले में अधिकांश भूमि सिंचित है लिहाजा वहां सूखे जैसी स्थिति नहीं है।

जिला स्तरीय कृषि अधिकारियों को सूखे से फसलों को हुए नुकसान का जायजा लेने के निर्देश दिए हैं। रिपोर्ट मिलने के बाद उसे शासन को भेजा जाएगा ताकि प्रभावित काश्तकारों को मुआवजा दिलाया जा सके।

मौसम की मार से काश्तकार बेहाल

पिछले वर्षों के दौरान कभी सूखे की तो कभी अतिवृष्टि की मार पड़ती रही है। वर्ष 2014-15 में रबी के सीजन में सूखे के कारण प्रदेश में 3 लाख 75 हजार हेक्टेयर भूमि में 513.69 करोड़, वर्ष 2015-16 में एक लाख नौ हजार हेक्टेयर में 95.79 करोड़ का नुकसान आंका गया। गत वर्ष खरीफ फसलों को 11 हजार हेक्टेयर भूमि पर 4.21 करोड़ का नुकसान हुआ।

 

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