उचित इलाज न होने पर बालक ने दम तोड़ा

जब वक्त रहते उचित इलाज की जरूरत थी तब लॉकडाउन ने घर से बाहर कदम रखने को लाचार कर दिया। लॉकडाउन के चौथे चरण से मिली रियायत से जब कदम बाहर रखे तब तक देर हो चुकी थी। नतीजतन देर से शुरू हुए इलाज से बचाया नहीं जा सका। लॉकडाउन में लिखी गई यह बेबसी भरी कहानी है 12 साल के हर्ष की। उसको खोने के बाद माता-पिता को अब यही दर्द साल रहा है कि लॉकडाउन के चलते वह अपने लाल का इलाज नहीं करा सके। शहर के मोहल्ला बैरून कटरा साहब खां निवासी विनय कुमार का पुत्र हर्ष कक्षा सात में पढ़ रहा था।

विनय बताते हैं कि हर्ष अपनी ननिहाल कौंच जालौन में रहकर ही पढ़ाई कर रहा था। वहीं पर वह जब बीमार रहने लगा तो इसकी जानकारी होने पर वह बेटे को घर पर बुलाकर इलाज कराना चाहते थे। लेकिन लॉकडाउन में छटपटाने के सिवा कुछ नहीं कर सके। उधर बेटे की तबीयत भी लगातार बिगड़ती जा रही थी। ससुराल वालों से लगातार संपर्क में रहे तो बताया गया कि पहले सामान्य बुखार की शिकायत रही फिर टाइफाइड और उसके बाद मलेरिया बताया गया। लेकिन सही मर्ज पकड़ में न आने से बेहतर इलाज नहीं हो सका। 10 दिन पहले जब हर्ष घर पर आया तो उसको श्वांस लेने में तकलीफ और कमजोरी को देखते हुए जिला क्षय रोग अस्पताल में जाकर जांच कराई। जांच में उसको क्षय रोग पाया गया। तब अस्पताल से छह माह के इलाज का कोर्स बताया गया। अस्पताल से एक माह की दवा दी गई। दवा खाते पांच दिन ही गुजर सके थे। छठवें दिन मंगलवार को श्वांस लेने में तकलीफ ज्यादा बढ़ गई थी। हालत नाजुक होने पर उसको लेकर जिला अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर ने मृत घोषित कर दिया। वन विभाग में दैनिक वेतनभागी विनय कुमार के दो बेटों में हर्ष बड़ा था। दूसरा बेटा आशुतोष सात साल का है। कोर्स के मुताबिक कार्ड बनाकर इलाज की शुरुआत की जाती है। मरीज को बंद पैकेट में दवा उपलब्ध करायी जाती है। दवा लेने के दौरान तकलीफ बढ़ने पर सहायक दवा दी जाती है। अगर कोर्स चलने के दरम्यान हर्ष को तकलीफ बढ़ गई थी तो अभिभावक को वक्त रहते जांच करानी चाहिए थी।

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