इन फिल्मों ने दिखाया एजुकेशन सिस्टम का असली चेहरा जो रहा बाकी मूवीज़ से अलग

बॉलीवुड में हर मुद्दे पर फिल्में बनती रहती हैं. जातिवाद से लेकर राजनीति, धर्म और समाज की कुरीतियों पर वार करती कई सारी फिल्में बनती आई हैं. लेकिन गौर किया जाए तो हमारे देश के एजुकेशन सिस्टम की खामियों और अच्छाइयों को दिखाती फिल्में कम ही बनी हैं.

3 idiots

सुपर 30 इनमें से एक नाम है जो हाल ही में रिलीज हुई है. फिल्म में ऋतिक रोशन ने आनंद कुमार का रोल प्ले किया है. इसके अलावा बॉलीवुड में एजुकेशन सिस्टम को लेकर कौन सी फिल्में बनी हैं, बता रहे हैं ऐसी फिल्मों के बारे में.

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3 इडियट्स-  साल 2009 में आई इस फिल्म में बेहद यूनिक तरीके से दिखाया गया था कि एक कॉलेज लाइफ का माहौल कैसा होता है. इससे पहले बन रही फिल्मों में दिखाया गया था कि कॉलेज लाइफ की फिल्मों में सिर्फ गुंडई, मारपीट और रोमांस के अलावा भी बहुत कुछ होता है. एक कॉलेज के 3 स्टूडेंट्स के दृष्टिकोण से दिखाया गया कि कॉलेज वास्तव में कैसा होता है और एजुकेशन सिस्टम के सबसे जमीनी मुद्दे क्या हैं.

किताब- गुलजार साहब के निर्देशन में बनी फिल्म किताब ने एक छोटे बच्चे के दृष्टिकोण से ये बताने की कोशिश की थी कि वास्तव में बिना रुचि के पढ़ाई करना कितना नुकसान देह है और कैसे छोटी उम्र में बच्चों पर पढ़ाई थोप दी जाती है, बजाए इसके कि किताबों को दोस्ताना अंदाज में पेश किया जाए.

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हिंदी मीडियम- इस फिल्म के जरिए भारतीय एजुकेशन सिस्टम में पैदा हुई दरार के बारे में बताया गया. कैसे हमारा समाज सरकारी स्कूलों की नजरअंदाजी करता है और हाई वाई स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की कोशिश करता है. साथ ही अंग्रेजी हमेेरे समाज में बोल चाल की भाषा में किस तरह से हावी हो गई है और कैसे ये लोगों के हाव-भाव में भी दब्दीली ला रही है ये भी इस फिल्म में बताया गया है.

नील बटा सन्नाटा-  इस फिल्म के जरिए दिखाया गया है कि एक मां अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए कितनी मेहनत करती है. जितनी मेहनत उसे इस संदर्भ में करनी पड़ती है उससे कहीं ज्यादा मेहनत उसे पढ़ाई के प्रति उस लड़की की रुचि जागरुक करने में लग जाती है.

तारे जमीं पर-  इस फिल्म में दिखाया गया था कि एक छोटा लड़का जो कि पढ़ाई करना बिल्कुल पसंद नहीं करता मगर इसके बावजूद भी वो काफी होनहार है. वो जीवन और समाज के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रखता है. मगर जेनेरेशन गैप के चलते वो ये बात अपने पैरेंट्स और टीचर्स से नहीं कह पाता. यही कॉमन्यूकेशन की मिसअंडरस्टेंडिंग कई सारे बच्चों में देखने को मिलती है.

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