आसान नहीं है किसानों की नाराजगी, 32 साल पहले भी अन्नदाता की दिल्ली कूच के बाद कांप गयी थी केंद्र सरकार

केंद्र सरकार (Central Government) द्वारा बनाए गए कृषि कानून के विरोध में पंजाब- हरियाणा से आए हजारों किसानों का लगातार 5वें दिन भी प्रदर्शन (Kisan Protest) जारी है। किसान इस वक्त दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसानों के हंगामे को देख केंद्र द्वारा किसानों के साथ बातचीत का प्रस्ताव भी भेजा गया जिसे किसानों ने ठुकरा दिया। दिल्ली की मौजूदा स्थिति देख 32 साल पहले की याद आ जाती है। यदि बात करें 32 साल पहले की तो इससे भी अधिक संख्या में किसान दिल्ली के बोट क्लब (Boat Club) में एकत्र हुए थे। उस दौर में किसानों का नेतृत्व नेता महेंद्र सिंह टिकैत (Mahendra Singh Tikait) कर रहे थे। किसानों की मांगों को लेकर महेंद्र सिंह करीब 5 लाख किसानों को लेकर दिल्ली पहुंचे थे।

बता दें कि महेंद्र सिंह का नाम इतना प्रभावी माना जाता है कि जब भी कभी किसान आंदोलन की चर्चा होती है तो उनके नाम का जिक्र होता ही है। उनका अंदाज कुछ अलग ही था वे आंदोलन के दैरान मंच पर नही बल्कि हुक्का गुड़गुड़ाते हुए किसानों के बीच बैठ जाया करते थे। एक बार उनके आंदोलन के कारण सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी (Indian National Congress) को अपनी रैली की जगह बदल देनी पड़ी थी।

♦गरज उठे थे महेंद्र सिंह

यदि महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों का मसीहा कहें तो कोई आश्चर्य नही। किसान उन्हें बाबा टिकैत (Baba Tikait) कह कर बुलाते थे। किसानों के साथ उनका तासमेल ऐसा था कि उनकी एक ही आवाज पर लाखों किसान पैदल ही चल दिया करते थे। कुछ इसी तरह दिल्ली में 25 अक्टूबर 1988 को हुआ जब महेंद्र सिंह ने किसानों की मांगों को लेकर उन्हें बोट क्लब पहुंचे थे।

♦2 किसानों की हुई मौत

किसानों का आंदोलन करने का मुख्य कारण बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य था। जिसके लिए पश्चिमी यूपी से बड़ी तदाद में किसान देश की राजधानी दिल्ली पहुंचे थे। वहीं किसानों की संख्या देख प्रशासन ने उन्हें रोकने की पूरा प्रयास किया। यहां तक कि पुलिस ने किसानों को खदेड़ने के लिए उन पर फायरिंग भी की जिसमें कुल 2 किसानों की मौत हो गई। 2 किसान भाइयों को गोली लगते ही किसानों ने अपना कहर दिखाना शुरु कर दिया जिसके बाद उन्हें दिल्ली जाने से कोई रोक नही सका।

♦सरकार ने नही सुनी बात

बता दें कि जब किसान बोट क्लब में प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हो रहे थे तब वहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi ) की पुण्यतिथि (30 अक्टूबर) के लिए तैयारियां चल रही थीं। कार्यक्रम के लिए मंच बनाया जा रहा था जिस पर किसानों ने ही कबजा कर लिया और वहीं जम गए। इस पर किसान का नेतृत्व कर रहे महेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार उनकी बातों को नहीं सुन रही जिसके लिए वे यहां आए हैं। इसके साथ ही वे करीब एक हफ्ते तक वहीं प्रदर्शन करते हुए जमें रहे।

♦इस तरह झुकी किसानों के आगे सरकार

किसानों की स्थिति को सरकार द्वारा नहीं पूछने पर नरेंद्र सिंह ने राजीव गांधी (Rajiv Gandhi ) पर वार करते हुए कहा कि, “प्रधानमंत्री ने दुश्मन जैसा व्यवहार किया है। किसानों की नाराजगी उन्हें सस्ती नहीं पड़ेगी।” किसानों की हुंकार ने दिल्ली में गर्मी बढ़ा दी थी जिसके कारण सरकार को उनके आगे झुकना ही पड़ा। बता दें कि राजीव गांधी ने भारतीय किसान यूनियन की सभी 35 मांगों पर फैसला लेने का आश्वासन दिया। जिसके बाद ही किसानों ने बोट क्लब का धरना 31 अक्टूबर 1988 को खत्म किया और दिल्ली की गर्मी इस तरह से कम हुई।

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