आईआरएस अधिकारी डॉ. श्वेताभ की सिर्फ 8 साल में बढ़ी इतनी आमदनी, जानकर चौक जाएंगे आप

सीबीआई को भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में चर्चित आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) अधिकारी डॉ. श्वेताभ सुमन के खिलाफ जांच में कई साक्ष्य मिले। बकौल सीबीआई, आठ साल में सुमन की संपत्ति आय से करीब 337 फीसदी अधिक बढ़ी।

देहरादून
सीबीआई ने शिकायत मिलने के बाद सुमन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए आठ अगस्त, 2005 को 14 टीमें गठित कर देहरादून, जमशेपुर (झारखंड), नोएडा, दिल्ली आदि शहरों में एक साथ छापेमारी की। एक अप्रैल, 1997 से 31 मार्च, 2004 समयावधि को लेकर की गई जांच में सीबीआई को पता चला था कि उन्होंने अपने एक घनिष्ठ मित्र के नाम देहरादून के पौंधा में 55 बीघा जमीन खरीदी है।
जीजा अरुण सिंह के नाम पर एक होटल बनाया
मां के नाम पर प्लॉट, मकान, कार, नोएडा, जमशेदपुर और लखनऊ में फ्लैट खरीदे हैं। बोधगया में भी श्वेताभ ने अपने जीजा अरुण सिंह के नाम पर एक होटल बनाया है। सीबीआई के मुताबिक जांच में सामने आया कि उन्होंने कुछ लोगों से डरा-धमकाकर तो कई को लालच देकर संपत्ति अर्जित कर करीबियों और रिश्तेदारों के नाम कराई है।

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कई वित्त विशेषज्ञों से इन संपत्तियों का आकलन कराया गया तो ये तकरीबन 3.14 करोड़ रुपये की निकली। इसी आधार पर पाया कि यह संपत्ति उनकी इस दरम्यान (आठ साल) की आय से 337 फीसदी अधिक है। सीबीआई ने उन सब लोगों से पूछताछ की जो श्वेताभ के साथ मिले हुए थे।
40 पन्नों का आरोपपत्र दाखिल
उसके बाद सीबीआई ने इस मुकदमे में श्वेताभ सुमन की मां गुलाब देवी, जीजा अरुण कुमार सिंह, मित्र व करीबी राजेंद्र विक्रम सिंह, राजुल अग्रवाल व विनय कुमार को शामिल किया। सीबीआई ने वर्ष 2010 में श्वेताभ सुमन के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 व 11, अन्य आरोपियों के खिलाफ आईपीसी 109 (अपराध के लिए उकसाना) व भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत 40 पन्नों का आरोपपत्र दाखिल किया।

ट्रायल के दौरान आरोपी राजुल अग्रवाल और विनय कुमार की मौत हो गई थी। मार्च 2017 में उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश पर इस मुकदमे की नियमित सुनवाई की गई। इस दौरान अभियोजन की ओर से 255 गवाह और 1200 दस्तावेजी सुबूत पेश किए। इन सभी गवाहों को सुनने और साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद अदालत ने बुधवार को सजा का एलान किया।

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केंद्रीय वित्तमंत्री की अनुमति को छह बार दी चुनौती
भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे से बचने के लिए श्वेताभ ने कई हथकंडे अपनाए थे। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अनुमति को भी निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक चुनौती दी। बावजूद इसके वे सफल नहीं हो पाए।

दरअसल, सीबीआई ने श्वेताभ के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री से अनुमति मांगी थी। 23 जनवरी 2010 को वित्तमंत्री ने सीबीआई को अनुमति दी। इस अनुमति को चुनौती देने के लिए सुमन वर्ष 2011 में हाईकोर्ट (नैनीताल) चले गए, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। उसके बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय न जाकर वर्ष 2012 में निचली अदालत में चुनौती दी। लेकिन, यहां भी अनुमति को सही ठहराया गया।
श्वेताभ के केस पर विजिलेंस को लेक्चर
निचली अदालत ने ही वर्ष 2016 में उनकी मांग को खारिज करते हुए अनुमति को सही माना। वर्ष 2017 और फिर वर्ष 2018 में भी इसी तरह अदालतों के चक्कर काटे। लेकिन, वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने श्वेताभ की इस हरकत पर एक लाख रुपये जुर्माना देने और सीबीआई को जल्द मुकदमा फाइनल कराने के निर्देश दिए।

सीबीआई श्वेताभ सुमन के खिलाफ जांच और अब आए मुकदमे को बड़ी कार्रवाई के तौर पर देख रही है। उनकी इस जांच को देखते हुए पिछले दिनों विजिलेंस ने भी सीबीआई को लेक्चर के लिए बुलाया था। इस पर 15 दिन पहले सीबीआई के अधिवक्ता सतीश गर्ग ने विजिलेंस मुख्यालय में पांच घंटे का लेक्चर दिया। इसमें विजिलेंस को सीबीआई की भागदौड़ से लेकर जांच के सभी पहलुओं को बताया था।

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