यूपी की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन पर नेताओं का अवैध रूप से कब्जा

सोनभद्र में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं। जिन अफसरों की यहां तैनाती हुई, उनमें से अधिकतर ने अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के भरण-पोषण का इंतजाम कर दिया।

अवैध रूप से कब्जा

इसमें वन और राजस्व विभाग के कार्मिकों की मिलीभगत जगजाहिर है। पीढ़ियों से जमीन जोत रहे लोगों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है।

खास बात यह है कि पांच साल पहले वन विभाग के ही एक मुख्य वन संरक्षक एके जैन ने यह रिपोर्ट दी थी। साथ ही मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश भी की थी, लेकिन इस रिपोर्ट के आधार पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

सोनभद्र में जमीन पर कब्जे को लेकर नरसंहार की बुनियाद कोई एक दिन में नहीं रखी गई। इस क्षेत्र को जानने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो इस तरह की वारदातों को रोक पाना और भी मुश्किल होगा। हालांकि, इन हालात से वर्ष 2014 में ही तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन ने शासन व सरकार को अवगत करा दिया था।

जैन की रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है। अब तक एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन अवैध रूप से बाहर से आए ‘रसूखदारों’ या उनकी संस्थाओं के नाम की जा चुकी है। यह प्रदेश की कुल वन भूमि का छह प्रतिशत हिस्सा है। जैन ने पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की थी।

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रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र में 1987 से लेकर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है, जबकि भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत यह जमीन ‘वन भूमि’ घोषित की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता। इतना ही नहीं, आहिस्ता-आहिस्ता अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एक-दूसरे को बेचने के अधिकार भी लगातार दिए जा रहे हैं।

इसे वन संरक्षण अधिनियम-1980 का सरासर उल्लंघन बताते हुए बताया गया कि 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग करके अनियमितता की।

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लेकिन 19 सितंबर 2012 को तत्कालीन सचिव (वन) के मौखिक आदेश पर विभागीय वकील ने यह याचिका चुपचाप वापस ले ली। हालात का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि चार दशक पहले सोनभद्र के रेनूकूट इलाके में 1,75,896.490 हेक्टेयर भूमि को धारा-4 के तहत लाया गया था, लेकिन इसमें से मात्र 49,044.89 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा-20 के तहत) मिल सकी। यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र में है।

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