अब बदल गया 1 किलोग्राम का वजन, जानें कैसे हुआ ये काम…

वर्तमान में इसे प्लेटिनम से बनी एक सिल के वज़न से परिभाषित किया जाता है जिसे ‘ली ग्रैंड के’ कहा जाता है. ऐसी एक सिल पश्चिमी पेरिस में इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स (बीआईपीएम) के पास साल 1889 से बंद है.

1 किलोग्राम

फ़्रांस के वर्साइल्स में ‘वेट एंड मेज़र्स’ पर एक बड़ा सम्मलेन आयोजित किया गया था जिसमें कई वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया था.

इसमें किलोग्राम की परिभाषा बदलने के लिए वोट किया गया जिसके बाद इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी गई.

हालांकि, यूके में नेशनल फ़िज़िकल लैबोरेट्री की वैज्ञानिक पेर्डी विलियम्स ने इसके बारे में मिलीजुली राय ज़ाहिर की.

वो कहती हैं, “मैं लंबे वक्त से इस प्रोजेक्ट के साथ नहीं जुड़ी हूं और मैं किलोग्राम का माप पसंद करती हूं. लेकिन ये अपने आप में महत्वपूर्ण पल है और मैं एक अच्छा कदम है. ये नया तरीका बेहतर तरीके से काम करेगा.”

जो बदलाव हुआ है वो लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करेगा. लेकिन, उद्योग और विज्ञान में इसका व्यावहारिक प्रयोग होने की उम्मीद है क्योंकि यहाँ सटीक माप होने की आवश्यकता होती है.

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अंतरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में किलो सात बेसिक यूनिट्स में से एक है.

उनमें से चार हैं- किलो, एंपियर (विद्युत प्रवाह), केल्विन (ताप) और मोल (पार्टिकल नंबर). किलोग्राम अंतिम एसआई बेस यूनिट है जो अभी तक एक फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट द्वारा परिभाषित है.

‘ली ग्रैंड के’ लंदन में निर्मित 90 प्रतिशत प्लेटिनम और दस प्रतिशत इरिडियम से बना 4 सेंटीमीटर का एक सिलेंडर है, जो पश्चिमी पेरिस के सीमांत सेवरे में इंटरनेश्नल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेजर्स (बीआईपीएम) के वॉल्ट में साल 1889 से बंद है.

क्योंकि फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट आसानी से परमाणु को खो सकते हैं या हवा से अणुओं को अवशोषित कर सकते हैं, इसी कारण इसकी मात्रा माइक्रोग्राम में दसियों बार बदली गई थी.

इसका मतलब है कि किलोग्राम और स्तर मापने के लिए दुनिया भर में प्रोटोटाइप का उपयोग किया जाता है, जो कि एकदम सही अशुद्धि बताता है.

सामान्य जीवन में इस तरह के मामूली बदलाव दिखाई भी नहीं देते, लेकिन एकदम सटीक वैज्ञानिक गणनाओं के लिए ये एक बड़ी समस्या रही है.

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