अक्षय तृतीया का भगवान परशुराम से क्या है गहरा नाता, जानें…
अक्षय तृतीया या आखा तीज बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु बैसाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में मानी गई है।
अक्षय तृतीया को ही नर-नारायण और परशुराम जी के अवतार हुए इसलिए इस दिन इनका जनमोत्सव मनाया जाता है। भारतीय कालगणना के सिद्धांत से इसी दिन सतयुग की समाप्ति एवं त्रेता युग का आरंभ हुआ। इसलिए इस तिथि को सर्वसिद्ध (अबूझ) तिथि के रूप में मान्यता मिली हुई है।
अक्षय तृतीया का भगवान परशुराम के अवतार से संबंध होने से यह पर्व राष्ट्रीय शासन व्यवस्था के लिए भी एक विशेष स्मरणीय एवं चिंतनीय पर्व है। दस महाविद्याओं में भगवती पीतांबरा (बगलामुखी) के अनन्य साधक, भगवान शिव के परमप्रिय जामदग्नेय राम जिन्हें सर्वदा अमोघ परशु धारण करने के कारण संसार परशुरामजी के नाम से सम्बोधित करता है, उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया।