
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह फैसला लेने में जुटे हैं कि पाकिस्तान को ”सबक” सिखाने का सबसे माकूल तरीका क्या हो, तो वे सदियों पुराने ज्ञान का सहारा ले सकते हैं. उनकी पार्टी की मूल विचारधारा हिंदुत्व के लिहाज से भी यह उपयुक्त रहेगा.
करीब ढाई हजार साल पहले प्राचीन भारत के आदि रणनीतिकार कौटिल्य ने अपने ”अर्थशास्त्र” में विस्तार से बताया था कि दुश्मन देशों से कैसे निपटा जाए. अपने पूर्ववर्ती सुन त्सू की ही तरह कौटिल्य भी जल्दीबाजी में जंग छेडऩे के हिमायती नहीं थे, बल्कि कदम बढ़ाने से पहले सभी विकल्पों को सावधानी से तौलने की बात करते थे. कौटिल्य ने कहा था, ”अमन और जंग में अगर बराबर की दूरी है तो अमन का रास्ता चुनना चाहिए.”
कौटिल्य मानते थे कि जंग दरअसल राजनीति को ही दूसरे तरीके से जारी रखने का साधन है और वे इसे आखिरी विकल्प मानते थे. सदियों बाद प्रशिया के जनरल कार्ल वॉन क्लॉज़वित्ज ने भी यही बात कही. कौटिल्य के अनुसार अकेले सैन्यबल ही जीत की कुंजी नहीं है बल्कि भेदक न्याय-निर्णय, समग्र ज्ञान और राजनीति पर गहरी पकड़ भी इसके लिए जरूरी है.