लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद भाजपा में संगठन का चेहरा चुनना एक चुनौती
केंद्रीय और राज्य संगठनों में अगड़ा को चेहरा बनाया जाए या पिछड़ा को? लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद भाजपा में इसको लेकर गहन मंथन हो रहा है। नतीजे ने खासतौर से पिछड़ों की जाति विशेष की राजनीति करने वाले कई दलों के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है। ऐसे में पार्टी में इस बात पर मंथन हो रहा है कि क्या पिछड़ा दांव के सहारे क्षेत्रीय दलों के मूल आधार में सेंध लगाया जा सकता है?
आम चुनाव में बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद खाता नहीं खोल पाई तो यूपी में बसपा से गठबंधन कर सपा अपनी सेहत नहीं सुधार पाई। नतीजे के बाद राजद में जबरदस्त अंतर्विरोध की स्थिति है। सोमवार को बसपा ने सपा से किनारा करने का साफ संदेश दे दिया। महाराष्ट्र में भी चुनाव नतीजे ने एनसीपी के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसे में भाजपा में इस बात पर मंथन हो रहा है कि क्या पिछड़ी जाति के नेता को चेहरा बनाकर इस स्थिति का लाभ उठाया जा सकता है।
अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का नाम सबसे आगे है। महासचिव भूपेंद्र यादव अब भी रेस में बने हुए हैं। पार्टी में अब तक ओबीसी से कोई अध्यक्ष नहीं बना है। राज्य संगठन की तरह केंद्रीय संगठन में शीर्ष पद को लेकर उसी तरह की उलझन है। पार्टी इसी हफ्ते कार्यकारी अध्यक्ष की घोषणा कर देगी।
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यूपी में मनोज सिन्हा आगे
जहां तक यूपी का सवाल है तो महेंद्र नाथ पांडे के मंत्री बनने के बाद नए अध्यक्ष पर प्रारंभिक चर्चा हुई है। रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा आगे हैं। अगर पिछड़ा वर्ग से अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी तो स्वतंत्र देव सिंह सहित कुछ दूसरे नाम सामने आ सकते हैं।