राजनीति से इतर कैसे थे पटेल और नेहरू के आपसी रिश्ते, आइए जानते हैं

आज लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 144वीं जयंती है. सरदार पटेल के सम्मान में इस बार पूरा देश इस दिन को ‘एकता दिवस’ के तौर पर मना रहा है. सरदार पटेल का जिक्र जब भी होता है देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जिक्र जरूर होता है.

पटेल और नेहरू

दोनों के आपसी रिश्तों को अक्सर बीजेपी मुद्दा बनाती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी सभाओं में कहते रहे हैं कि अगर आजादी के बाद नेहरू की जगह पटेल पीएम बनाए गए होते तो देश की स्थिति आज कुछ और होती. कैसे थे सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच रिश्ते? अगर पटेल और नेहरू की एक-दूसरे को लिखी दो चिट्ठियों पर नजर डाली जाए तो इस सवाल का कुछ-कुछ जवाब मिल जाता है.

1947 में नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने तो सरदार पटेल को गृह मंत्री जैसा अहम ओहदा मिला. यहां यह जानना जरूरी है कि नेहरू की कैबिनेट में सरदार पटेल की एंट्री कैसे हुई. रिश्तों के संदर्भ में ही यह किस्सा जानना बहुत ही दिलचस्प है. अंग्रेजों ने भारत की आजादी का दिन मुकर्रर कर दिया था. देश की पहली आजाद सरकार कैसे चलेगी, मंत्रिमंडल में कौन-कौन लोग शामिल होंगे इन सभी मुद्दों पर चर्चा चल रही थी.

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1 अगस्त 1947 को नेहरू ने पटेल को लिखी थी चिट्ठी

इसी बीच 1 अगस्त 1947 को पंडित नेहरू ने सरदार पटेल को एक चिट्ठी लिखी. चिट्ठी को यूं तो औपचारिक ही बताया गया था लेकिन वह तत्कालीन राजनीति की दो बड़ी छवियों के बीच के संवाद और रिश्तों को बखूबी बयां करती है. नेहरू ने सरदार पटेल को लिखा था, “कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूं. इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं.”

पटेल ने भी जवाब में नेहरू को लिखी चिट्ठी

सरदार पटेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा भेजी गई चिट्ठी का जवाब देने के लिए भी उसी माध्यम का इस्तेमाल किया. सरदार पटेल ने 3 अगस्त 1947 को नेहरू को जवाबी चिट्ठी लिखी. पटेल ने अपनी चिट्ठी में लिखा, ”आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद. एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता.”

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पटेल ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा, ”आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी. आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है. हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है. आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं.”

 

 

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