
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने समाज के वंचित और गरीब तबके के बच्चों के विद्यालयों में प्रवेश की मांग से संबंधित याचिका पर सोमवार को गुजरात सरकार से जवाब तलब किया है। याचिका में 63,610 सीटों को शिक्षा के अधिकार के तहत भरे जाने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि 9,000 से अधिक विद्यालयों में से हर विद्यालय में विद्यार्थियों की फर्जी संख्या दिखाकर इतनी सीटें रिक्त छोड़ दी गई हैं।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने गुजरात सरकार से मामले पर एक सप्ताह के अंदर जवाब देने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेस ने कहा, “बड़ी संख्या में विद्यालयों में पहली कक्षा में एक भी बच्चे को प्रवेश नहीं दिया गया है, जो समाज के वंचित एवं गरीब तबके से 25 फीसदी बच्चों को प्रवेश देने के नियम की अनदेखी करने वाला है।”
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उन्होंने कहा कि वास्तव में जिन विद्यालयों में एक भी बच्चे का प्रवेश न होने के आंकड़े दिए गए हैं, वे विद्यालय प्रवेश देने के बावजूद अंकड़े नहीं दे रहे और आरटीई अधिनियम के नियम की अवहेलना कर रहे हैं।
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याचिकाकर्ता संदीप हर्षाद्रय मुंज्यासरा ने अदालत से कहा, “गुजरात के 9000 से अधिक विद्यालयों की इस हरकत का उद्देश्य आरटीई के उस प्रावधान से बचना है, जिसमें प्रत्येक कक्षा में 25 फीसदी सीटें समाज के वंचित एवं गरीब तबके के बच्चों द्वारा भरना अनिवार्य है। इसके जरिए वे कक्षा में बच्चों की संख्या छिपाना चाहते हैं।”
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मुंज्यासरा ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा 29 अप्रैल, 2017 को दिए गए उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनकी याचिका को ठुकरा दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने गुजरात शिक्षा विभाग के सचिव को यह निर्देश देने की भी मांग की है कि गुजरात के सभी विद्यालयों की सूची और 2014-15, 2015-16, 2016-17 तथा 2017-18 शिक्षा सत्रों में प्रत्येक विद्यालय में कक्षा-1 में पंजीकृत विद्यार्थियों की वास्तविक संख्या सार्वजनिक की जाए।