गडकरी बनेंगे नए प्रधानमंत्री या फिर गठबंधन, कांग्रेस से आएगा नया चेहरा

जो चुनाव हारे हैं, वे हार के झटके से अभी तक नहीं उबरे हैं और जो जीते हैं, वे अगले पांच साल का नक्शा बना रहे हैं। शुरू-शुरू में विपक्ष के 22 नेता कहते रहे कि अगले प्रधानमंत्री मोदी नहीं बनेंगे। या तो गडकरी बनेंगे या फिर नया प्रधानमंत्री गठबंधन या कांग्रेस से आएगा। अब जब गठबंधन और कांग्रेस बुरी तरह से हार चुके हैं, तो उनके समर्थक बुद्धिजीवी मोदी/भाजपा की धांसू जीत और विपक्ष की हार के कारण खोजने में लगे हैं। इनका कहना है कि विपक्ष के पास मोदी के मुकाबले कोई चेहरा नहीं था। साथ ही विपक्ष के पास भाजपा के ‘राजनीतिक नैरेटिव’ को मात देने वाला कोई वैकल्पिक ‘राजनीतिक नैरेटिव’ नहीं था।

विपक्ष

वे चिल्लाते रहे कि मोदी कहकर भी न विदेश से कालाधन लाए, न किसी को पंद्रह लाख रुपये दिए, न किसानों को सही कीमत दी, न युवाओं को हर बरस दो करोड़ रोजगार दिए। उल्टे राफेल सौदे में भ्रष्टाचार किया और कि ‘चौकीदार चोर है’! इस आलोचना के साथ विपक्षी नेता उत्तर प्रदेश के गठबंधन की सफलता की कल्पना करके कहते रहे कि उत्तर प्रदेश हारी तो भाजपा गई! जाति का गणित भाजपा को हराने की गारंटी है। जाति ही भाजपा के राष्ट्रवाद की काट है।

जब सरकार ने ‘बालाकोट ऐक्शन’ किया, तो विपक्षी कहने लगे कि यह अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए किया कराया है। मोदी सिर्फ ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के अंधराष्ट्रवादी नारे के सहारे जीतना चाहते हैं। कई एग्जिट पोल जब भाजपा को तीन सौ से ऊपर सीट देने लगे, तब भी विपक्ष कहता रहा कि एग्जिट पोल भाजपा का खेल है। लेकिन जब 23 मई को नतीजे आए, तो भाजपा की 303 सीट देख विपक्ष की बोलती बंद हो गई।

ऐसा क्यों हुआ? विपक्ष, कांग्रेस और उसके थिंकटैंक बुद्धिजीवी भाजपा की आसन्न जीत क्यों नहीं देख पाए? मोदी, संघ और भाजपा की ताकत और अपनी ताकत की ऐसी भीषण ‘मिस रीडिंग’ क्यों हुई? इसलिए कि विपक्ष अपने ‘मोदी फोबिया’ के चलते मोदी के दैनिक विमर्शों, संघ और भाजपा के संगठन की ताकत और उनके पांच बरस के शासन की नीतियों और उपलब्धियों को कम से कमतर करके आंकता रहा।

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विपक्ष और उसके बुद्धिजीवियों की एक भी आलोचना या आरोप मोदी पर चिपक न सके। यही नहीं विपक्ष न मीडिया का प्रिय बन सका, न ही कल्पित ‘नाराज जनता’ तक पहुंच सका। अब जब मोदी फिर से पांच साल के लिए प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, तो विपक्ष और विपक्षी बुद्धिजीवियों का ‘मोदी फोबिया’ ‘पैरेनोइया’ में बदल गया है। वे दिन-रात ‘मोदी का डर’ बेचने में लगे हैं कि मोदी ने पहले ही सब संस्थान नष्ट कर दिए; अब जो बचे हैं, वे भी जाने वाले हैं और ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ बदल जाना है, ‘सेकुलिरज्म’ खत्म हो जाना है और यह देश एक ‘बहुमतवादी; हिंदूराष्ट्र’ बन जाना है।

विपक्ष के दुर्दिनों का कारण यही ‘मोदी फोबिया’ है। ‘मोदी फोबिया’ यानी मोदी के प्रति शाश्वत अंधविरोध, अंधघृणा और अंधक्रोध! इस फोबिया के चलते वह मोदी/संघ/भाजपा की ताकत के बिंदुओं को देख ही नहीं पाते। आजकल कोई चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं होता, लेकिन विपक्ष ऐसा रणबांकुरा है, जो सत्तापक्ष की ताकत के असली बिंदुओं को समझने और उसी के अनुसार अपनी तैयारी करने की जगह सिर्फ अपने क्रोध और शाप से भाजपा के ‘राष्ट्रवाद’ को भस्म कर देना चाहता है।

संघ और भाजपा का सांस्कृतिक राजनीतिक विमर्श बार-बार कहता है कि छह सौ बरस हमको (हिंदुओं को) इस्लामी शासकों ने दबाया, फिर पौने दो सौ साल तक अंग्रेजों ने रगड़ा। सत्तर-बहत्तर बरस पहले हम आजाद हुए और पिछले पांच बरस में हमने पहली बार अपनी ताकत को मोदी के रूप में महसूस किया है। संघ के मुहावरे में कहें, तो सदियों से रुका हुआ ‘राष्ट्रवाद’ अब अपनी ‘अभिव्यक्ति’ पाना चाहता है। वह उसे मोदी के रूप में पा रहा है। आम आदमी ने इसे लपक कर लिया है।

यह विमर्श कितना भी धार्मिक और क्रूर लगे और हम इससे कितने भी असहमत हों, यह नया ‘राष्ट्रवाद’ हमारे शाप से, हमारे अंधक्रोध से खत्म नहीं होने जा रहा। अब हम मोदी, संघ और भाजपा के कुछ और ताकतवर बिंदुओं को देखेंः पिछले पांच बरसों में भाजपा ने जनहित में कोई एक सौ तैंतीस योजनाएं लागू की हैं, इनमें प्रमुख हैं जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, शौचालय योजना, किसानों को छह हजार रुपये सालाना राहत देने की योजना, मुद्रा लोन योजना आदि।

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यही नहीं, मोदी ने तीन तलाक को खत्म करने वाली सुधारवादी और अन्य विकास योजनाओं को घोषित करके ही नहीं छोड़ दिया, बल्कि उनके लाभ लाभार्थी तक पहुचे और वे वोट देने आएं, इसकी गांरटी भी की। इसके लिए भाजपा ने शक्तिकेंद्रों, बूथ मैनेजरों और पन्ना प्रमुखों को दिन-रात सक्रिय किया और इस तरह बीस- बाईस करोड़ लाभार्थियों, खासकर औरतों का वोट पाया! इन बीस-बाईस करोड़ लाभार्थियों के वोटों के अलावा ‘मजबूत राष्ट्र’ और ‘मजबूत नेता’ के नारे ने कम से कम दस प्रतिशत वोट का लेप ऊपर से चढ़ाया, तब मोदी इकतीस की जगह इकतालीस प्रतिशत वोट लेकर आए।

‘मोदी है तो मुमकिन है’ की लाइन इसीलिए नीचे तक बिकी! भाजपा ने जितनी सीट जीतने का दावा किया, उतनी ही जीतीं-यह चमत्कार से कम नहीं। विपक्ष को चाहिए कि भाजपा के इस सटीक चुनावी मैनेजमेंट को समझे। लेकिन अफसोस कि ‘मजबूत सरकार’ ‘मजबूत देश’ ‘मजबूत राष्ट्र’ और ‘आतंकियों को घर में घुसकर मारने वाले’ ‘मजबूत नेता’ के नारों की लोकप्रियता की ताकत को विपक्ष अभी तक नहीं समझ सका है।

बेहतर यही है कि उनके विपक्षी अपने ‘मोदी फोबिया’ से उबरें और नए सिरे से इस नए मोदी को समझें और मोदी के उस नए विमर्श को समझें, जो जीत के बाद संसद के केंद्रीय कक्ष के मोदी के भाषण में गूंजा है, तभी विपक्ष अपने विमर्श को मोदी से सवाया बना सकता है।

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