किसानों को आवारा पशुओं से मुक्त करने की योजना, राष्ट्रीय गौरक्षा आंदोलन समिति…

रिपोर्ट – लोकेश त्रिपाठी

अमेठी- राष्ट्रीय गौरक्षा आंदोलन समिति, विश्व हिंदू परिषद/गौ रक्षा विभाग के राष्ट्रीय गौरक्षा आंदोलन समिति के तत्वाधान में अमेठी कस्बे के सरयु देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज अमेठी में काशी प्रांत का कल 21 दिसंबर से दो दिवसीय प्रांतीय अधिवेशन चल रहा है जिसका समापन 22 दिसंबर को किया गया। जिसका प्रमुख मुद्दा भारतीय गौवंश रक्षण संवर्धन एवं गोवंश हत्या तथा मांस निर्यात निरोध के साथ रोजगार युक्त नौजवान तथा कर्ज मुक्त किसान है।

गौ रक्षा विभाग का यह काशी प्रांत का प्रांतीय अधिवेशन आज अमेठी में आयोजित किया गया है । इस कार्यक्रम के माध्यम से हमारे भारतीय नस्ल की देसी गाय जिसमें 33 कोटि देवी देवताओं का वास है । गो में वसते लक्ष्मी इस देश के अंदर दूध दही की नदियां बहती थी । भारत सोने की चिड़िया था इस देश के अंदर चीनी यात्री आते हैं और वह कहते हैं कि भारत के अंदर हमें पानी नहीं मिला हमें जहां भी गए गुड़ की डली और पहले दूध मिला। तो उस भारत के अंदर आज सिंथेटिक दूध मिल रहा है ।

उसके अंदर हमको पेस्टिसाइड युक्त अन्न मिल रहा है । हम सोने की चिड़िया की जगह धरातल पर पहुंच गए हैं । तो हमारे भारतीय नस्ल की गाय कैसे इस देश की समस्याओं का समाधान पूरा कर सकती है । वह प्रशिक्षण हम कार्यकर्ताओं को देते वह प्रशिक्षण हम कार्यकर्ताओं को देते हैं ।हमारा विश्व हिंदू परिषद का कार्यकर्ता गोरक्षा के लिए देशभर में 200 से लेकर ढाई सौ तक गोग्रास के रथ चलाता है । उनको हरे चारे की व्यवस्था करता है देश के अंदर गाय कैसे बचें? इसके लिए गोचर भूमि मुक्त कराता है । गायों की दुर्दशा के जवाब में कहा कि जो लोग गायों को छोड़ रहे हैं उनके लिए देश के अंदर तमाम ऐसे लोग हैं जो बगैर दूध देने वाली गाय को गौ आधारित खेती करने के लिए ले रहे हैं ।

उनके लिए देश के अंदर तमाम ऐसे लोग हैं जो बगैर दूध देने वाली गाय को गौ आधारित खेती करने के लिए ले रहे हैं अभी तक हमने लगभग 2000 गायों को किसानों में अभी तक हमने लगभग 2000 गायों को किसानों में बांटा है । हम लोग किसानों को गो आधारित खेती करके गाय पालने की प्रेरणा देते हैं। दूसरे जो गाय सड़कों पर बेसहारा घूम रही हैं उन गायों को किसान अपने खूंटे पर पाले तो उसका सहयोग समाज भी करें और हम भी विश्व हिंदू परिषद करते हैं और सरकार को भी करना चाहिए । इन बेसहारा गायों को सहारा बनने का काम विश्व हिंदू परिषद देश के अंदर करता है और समाज को प्रेरणा देता है।

विश्व हिंदू परिषद की शाखा गोरक्षा विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर गुरु प्रसाद सिंह ने बताया कि आधुनिक खेती किसान को कर्जदार बना दिया है। क्योंकि खेती के इनपुट्स इतने महंगे हैं । कि किसान बाजार के जंजाल में फंस गया । बीज खरीदा, खाद खरीदा, कीटनाशक खरीदा और बहुत सारे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स खरीद रहा है ।तो उसकी जो उत्पादन करता है। उसकी उत्पादन लागत इतनी ज्यादा है । कि जब वह बेचने जाता है तो उसको लाभ नहीं होता और खेती आज की डेट में घाटे का सौदा है ।

जब हम गो आधारित कृषि करेंगे। तो खेती में हम कृषि की लागत कम करेंगे और जब लागत कम होगी तो किसान का लाभ बढ़ेगा। किसान के ऊपर कोई कर्ज नहीं होगा । वह कर्ज मुक्त होगा । गाय के आधार पर ग्रामीण उद्योग खड़ा कर सकते हैं । धूपबत्ती बनाने का उद्योग बनाने का उद्योग, फिनायल बनाने का उद्योग, पंचगव्य का उद्योग, गो औषधियों का उद्योग, कीटनाशक का उद्योग, तथा खाद का उद्योग ग्रामीण में सोलह- सत्रह प्रकार के ऐसे उद्योग है । जिनको गाय के आधार पर खड़े किए जा सकते हैं । आज जिस तरह से इंडस्ट्री की हालत है । बेरोजगारी जिस तरह से बढ़ रही है । इस बेरोजगारी को हम ग्रामीण उद्योगों के माध्यम से समाप्त कर सकते। किसानों को गोवंश से निजात दिलाने के विषय में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि – जब हमको आधारित कृषि करेंगे तो उन पर गाय के उत्पादों के आधार पर उद्योग खड़ा करेंगे ।

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तब हमारे पास गोबर और गोमूत्र की डिमांड बढ़ेगी और गाय दूध 8 महीने 10 महीने देती है । लेकिन गोबर 12 के 12 महीने देती है जैसे ही इसका उपयोग बढ़ेगा । लोग दूध की जगह गोबर और गोमूत्र के लिए गो वंशीय पशुओं को पकड़ कर के अपने दरवाजे पर बांधने लगेंगे। देखिए काफी जगहों पर हम प्रयोग किए हैं । तो प्रयोग के तौर पर जैसे महाराष्ट्र में किसान गोवंश के आधार पर खेती कर रहा है और वह गो उत्पादों का उपयोग कर रहा है । उत्तर प्रदेश में भी हमने 1000 गांवों को अभी चिन्हित किया है । इस वर्ष अपनी राष्ट्रीय बैठक में उन 1000 गांव में हम गाय के आधार पर उद्योग खड़ा करेंगे और जल्दी गो आधारित कृषि का प्रारंभ करेंगे उससे हमारी गोवंश की समस्या समाप्त हो जाएगी और हर गांव में गौशाला का निर्माण हो जहां की समस्या है वहीं समाप्त हो जाए ऐसी अपनी योजना है।

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