विश्व अर्थराइटिस दिवस : रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए डेंगू, चिकनगुनिया जिम्मेदार

विश्व अर्थराइटिस दिवसनई दिल्ली। आज की बदलती जीवनशैली, मोटापा, गलत खानपान के कारण अर्थराइटिस यानी गठिया रोग युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है। अर्थराइटिस का सर्वाधिक प्रभाव घुटनों में और उसके बाद कूल्हों की हड्डियों में दिखाई देता है। ऐसे में डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों को इस रोग के प्रति और अधिक सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि डेंगू और चिकनगुनिया के करीब 20 प्रतिशत मरीजों को रूमेटाइड आर्थराइटिस (गठिया) की आशंका होती है। रूमेटाइड अर्थराइटिस रोग प्रतिरक्षण प्रणाली में असंतुलन से पैदा होने वाली बीमारी है, जो जोड़ों में सामान्य दर्द के रूप में शुरू होती है और इलाज के अभाव में शरीर के बाकी हिस्सों को प्रभावित करती है। यह लंबे समय तक रहने वाला सूजन का विकार है, जो हाथों और पैरों के साथ जोड़ों को प्रभावित करता है।

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विशेषज्ञों ने विश्व अर्थराइटिस दिवस (12 अक्टूबर) की पूर्व संध्या पर कहा कि डेंगू और चिकनगुनिया के करीब 80 प्रतिशत मरीज चार महीने के बाद इन बीमारियों के लक्षणों से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं, लेकिन 20 प्रतिशत मरीजों को गठिया (रूमेटाइड अर्थराइटिस) होने की आशंका होती है और ऐसे में इन मरीजों को अस्थि रोग चिकित्सकों से परामर्श लेना बेहद जरूरी है।

अर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष व इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक एवं जॉइंट सर्जन, डॉ. राजू वैश्य और भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में उपमहानिदेशक डॉ. सुजीत कुमार सिंह व इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अमित कुमार अग्रवाल ने संयुक्त रूप से एक अध्ययन किया है, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है। यह अध्ययन प्रसिद्ध शोध पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

डॉ. वैश्य ने कहा, “डेंगू अथवा चिकनगुनिया के विषाणु हमारी रोग प्रतिरक्षण प्रणाली में गड़बड़ी पैदा करते हैं और इसके परिणाम स्वरूप इन बीमारियों के 20 प्रतिशत मरीजों में रूमेटाइड अर्थराइटिस हो जाता है और अगर डेंगू एवं चिकनगुनिया के ठीक होने के कुछ सप्ताह बाद रूमेटाइड के लक्षण प्रकट हों तो आर्थोपेडिक चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।”

डॉ. सुजीत ने कहा कि डेंगू एवं चिकनगुनिया के मरीजों के लक्षणों पर निगरानी रखी जानी चाहिए और अगर गठिया के लक्षण नजर आएं तो रूमेटाइड का इलाज शुरू करना चाहिए।

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डॉ. वैश्य कहते हैं, “आज के समय में युवाओं में बढ़ते मोटापे, फास्ट फूड की बढ़ती चलन, विलासितापूर्ण जीवन और व्यायाम के अभाव में कम उम्र में ही हड्डियां एवं जोड़ कमजोर होने लगते हैं। हड्डियां घिसने लगती हैं। इसके अलावा युवाओं में अर्थराइटिस एवं ओस्टियो अर्थराइटिस की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है। आज देश में घुटने के अर्थराइटिस से पीड़ित लगभग 30 प्रतिशत रोगी 45 से 50 साल की उम्र के हैं, जबकि 18 से 20 प्रतिशत रोगी 35 से 45 साल के हैं। अर्थराइटिस की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है।”

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