त्रिपुरा में ताज के लिए दो चेहरों में घमासान, ये होगा अगला सीएम?

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता दिन-ब-दिन ऐसा मुकाम हासिल करती जा रही है कि विपक्ष भी इसे देखकर काफी बेचैन हो गया है। अब त्रिपुरा का चुनाव ही देखलें जोकि पिछले 25 सालों से वामपंथियों के गढ़ रहा। वहां भी भाजपा ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए कमल खिला दिया है।

त्रिपुरा में

इस विधानसभा चुनाव को जीतने में जिसकी सबसे बड़ी भूमिका रही है वो और कोई नहीं बल्कि राजनीतिक चाणक्य नाम से महशूर और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हैं।

भाजपा ने चुनावी मैदान तो मार लिया है लेकिन अब सबसे बड़ी चर्चा मुख्यमंत्री के चयन को लेकर चल रही है। सीएम की दौड़ में सूबे के दो बड़े नेता उभर कर सामने आ रहे हैं। पहला 48 वर्षीय नेता बिपल्ब कुमार देब और दूसरे हैं सुनील देवधर।

आइये आपको बताते हैं इन दोनों ही प्रबल दावेदारों के राजनीतिक शुरुआत के बारे में।

बिप्लब कुमार देब

इस चुनाव के जीत के बाद अगर किसी की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है तो वो हैं बिपल्ब कुमार देब। बिप्लब कुमार देब फिलहाल त्रिपुरा में भाजपा अध्यक्ष के पद पर हैं और उनके नेतृत्व में भाजपा ने त्रिपुरा से मानिक सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया है। बिप्लब आरएसएस से जुड़े रहे हैं।

बता दें त्रिपुरा के सीएम पद पर किसकी ताजपोशी होगी, यह भाजपा संसदीय समीति तय करेगी।

देब का जन्म दक्षिणी त्रिपुरा के उदयपुर में हुआ है। त्रिपुरा यूनिवर्सिटी से स्नातक करने के बाद देब नई दिल्ली में आकर आरएसएस के साथ जुड़ गए।

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बता दें देब ने दिल्ली में जिम ट्रेनर के रुप में भी काम किया है।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत हैं बिप्लब की पत्नी

बिप्लब की पत्नी नीति स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के संसद भवन कार्यालय में डिप्टी मैनेजर पद पर हैं। त्रिपुरा में बड़ी सियासी जीत के बाद दिल्ली में भाजपा कार्यालय में समर्थकों से घिरी नीति ने कहा है कि मैं त्रिपुरा के लोगों के लिए बहुत खुश हूं। उन्होंने कहा, ‘मैं कोई राजनैतिक व्यक्ति नही हूं, लेकिन मैं त्रिपुरा में भाजपा के नारे ‘चलो पलटाई’ से काफी प्रभावित हूं।’

सुनील देवधर

नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव के पीछे एक ऐसे व्यक्ति का हाथ है जो खुद न तो कभी यहां से चुनाव लड़ा और न ही मीडिया में आया। फिर भी विरोधी दलों के पसीने छुड़ा दिए।

सुनील देवधर नाम के इस शख्स ने नॉर्थ ईस्ट में भाजपा की नैया पार लगाई है। वाम सरकार को चुनौती देने का काम भी सुनील देवधर के खाते में ही जाता है।

वैसे तो देवधर मराठी हैं लेकिन फर्राटेदार बंगाली भी बोलते हैं। वे लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं। उन्हें बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी दी थी। यहां रहते हुए उन्होंने स्थानीय भाषाएं सीख लीं।

जब वो मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड में खासी और गारो जैसी जनजाति के लोगों से मिलते हैं तो उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। देवधर के पास पहले वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी थी। यहां चुनावों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन के बाद उन्हें नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी मिली।

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और तो और त्रिपुरा में वाम दलों, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में सेंध मारने का काम भी उन्होंने ही किया है। ‘मोदी लाओ’ की जगह ‘सीपीएम हटाओ’, ‘माणिक हटाओ’ जैसे नारे भी उन्हीं की देन हैं।

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