ध्यानपूर्वक इच्छाओं के निर्वहन से सिद्ध होंगे वांछित मनोरथ, मिलेगा आत्मज्ञान
अगर आप इसके बारे में जागरूक नहीं हैं, तो मैं यह बताना चाहूँगा कि 90 प्रतिशत लोगों के लिए उनके आत्मज्ञान प्राप्त करने का वक्त और उनके शरीर छोडने का वक्त एक ही होता है।
केवल वही लोग जो शरीर के दाँव-पेंच जानते हैं, जो इस शरीर रूपी यंत्र के विज्ञान को जानते हैं, जो शरीर के कल-पुर्जे की समझ रखते हैं, वही अपने शरीर में बने रहने में सक्षम होते हैं।
अपने शरीर में बने रहने में जो लोग सक्षम होते हैं, उनमें से ज्यादातर लोग अपना बाकी जीवन मौन में ही बिताते हैं। केवल कुछ ही इतने मूर्ख होते हैं जो अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ कुछ करना चाहते है, क्योंकि उस आयाम के बारे में बात करना जो लोगों के अनुभव में नहीं है, यह बहुत निराशाजनक है। लोग तर्क के आधार पर इसे स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं, पर यह बेहद निराशाजनक चीज है
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“लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं, ‘बुद्ध ने कहा इच्छा न करो। लेकिन आप तो कहते हैं-सारा कुछ पाने की इच्छा करो। यह विरोधाभास क्यों है?’ जो अपने जीवन-काल के अंदर समस्त मानव-जाति को ज्ञान प्रदान करने की इच्छा करते रहे, क्या उन्होंने लोगों को इच्छा का त्याग करने को कहा होगा? कभी नहीं। बड़ी से बड़ी इच्छाएँ पालिए। उन्हें पाने के लिए सौ फीसदी लगन के साथ कार्य कीजिए। ध्यानपूर्वक इच्छा का निर्वाह करेंगे तो वांछित मनोरथ पा सकते हैं।”
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