कौन हैं महर्षि अरबिंदो , जिन्हें पीएम मोदी हर साल 15 अगस्त पर लाल किले से करते हैं नमन

देश जब इस वक्त 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है तो इस पावन मौके पर वह सभी किरदार और क्रांतिकारी भी याद आ रहे हैं जिन्होंने इस मिट्टी की आजादी के लिए अपना जीवन मिट्टी कर दिया। इस मौके पर पीएम मोदी ने लाल किले से तिरंगा फहराया और देश को संबोधित किया। अपने भाषण में उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों को बखान करते हुए देश के कई महापुरुषों का नाम भी लिया और उनके द्वारा किए गए देशहित के कार्यों के बारे में बताया। पीएम के डेढ़ घंटे चले भाषण में महर्षि श्री अरबिंदो का भी जिक्र किया।

जाने कौन हैं अरविन्द घोष, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किया

पीएम मोदी हर साल 15 अगस्त को अपने भाषण में एक बार महर्षि अरबिंदो का जिक्र जरुर करते है। वहीं, उन्हें लाल किले से उनकी जयंती के दिन उन्हें श्रद्धासुमन भी अर्पित करते है। रविवार को लाल किले से अपने भाषण में पीएम ने महर्षि अरबिंदो का जिक्र करते हुए कहा,’ आज देश के महान विचारक श्री अरबिंदो की जयंती भी है। साल 2022 में उनकी 150वीं जयंती है। श्री अरविंद कहते थे कि हमें उतना सामर्थ्यवान बनना होगा, जितना हम पहले कभी नहीं थे। हमें अपनी आदतें बदली होंगी, एक नए हृदय के साथ अपने को फिर से जागृत करना होगा।’

कौन हैं महर्षि अरबिंदो
क्रांतिकारी महर्षि अरविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था। अरविंद के पिता का नाम डॉ.कृष्णधन घोष और माता का नाम स्वमलता था। अरविन्द घोष ने दार्जिलिंग के लोरेटो कान्वेंट स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। दो साल के बाद 1879 में अरविन्द घोष उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। लंदन के सेंट पॉल उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। उसके बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश ले लिया।

उनके पिता की इच्छा थी कि प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगिता में भाग लें और भारत में आकर एक उच्च पद पर सरकार की सेवा करें। पिता की इच्छा के लिए उन्होंने परीक्षा दी लेकिन उनकी इसमें रुचि नहीं थी। जिसके बाद वे जानबूझकर घुड़सवारी की परीक्षा देने नहीं गए। श्री अरबिंदो इस परीक्षा में सम्मलित न होने का कारण अंग्रेजों की नौकरी के प्रति घृणा की भावना थी।

Pm Narendra Modi Tribute Tomaharshi Aurobindo On 75th Independence Day -  श्रद्धांजलि: कौन हैं महर्षि अरबिंदो , जिन्हें पीएम मोदी हर साल 15 अगस्त पर  लाल किले से करते हैं नमन -

भारत लौटने के बाद महर्षि अरबिंद का रुझान स्वाधीनता की ओर होने लगा। इसी बीच 1902 में उनकी मुलाकात क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक से हुई। वे तिलक के क्रांतिकारी विचारों से घोष बेहद ही प्रभावित हुए। इस दौरान उनकी मुलाकात कई अन्य प्रमुख नेताओ से हुई फिर वे आक्रामक राष्ट्रवाद के वे प्रबल समर्थक बन गए। श्री अरबिंद ने ‘वन्दे मातरम’ नाम के अखबार का प्रकाशन किया था। उनके संपादकीय लेखों ने उन्हें अखिल भारतीय ख्याति दिला दी।

महर्षि अरबिंदो की क्रांतिरकारियों गतिविधियों से अंग्रेजो ने भयभीत होकर सन 1908 में उन्हें और उनके भाई को अलीपुर जेल भेजा। यहां उन्हें दिव्य अनुभूति हुई। जेल से छूटकर अंग्रेजी में ‘कर्मयोगी’ और बंगला भाषा में ‘धर्म’ पत्रिकाओ का संपादन भी उन्होंने किया। सन 1912 तक सक्रिय राजनीति में भाग लेने के बाद उनकी रूचि गीता, उपनिषद और वेदों में हो गई।  जेल से बाहर आने के बाद वे कोलकाता छोड़कर  में  पुडुचेरी रहने लगे।

महर्षि अरबिंदो ने लिखीं कई किताबें
महर्षि अरबिंदो ने लाइफ डिवाइन, ऐसेज आन गीता और फाउंडेशन ऑफ इंडियन कल्चर समेत कई प्रसिद्ध पुस्तके लिखी। श्री अरबिंद की एक और महत्त्वपूर्ण कविता संग्रह,जिसे महाकाव्य का  दर्जा हासिल है, वह सावित्री है। सावित्री के बारे में श्री अरबिंदो की आध्यत्मिक सहयोगिनी श्री मां कहती है कि वह अविन्द की अंतरदृष्टि की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है। सन 1926 से 1950 तक वे अरविंद आश्रम में तपस्या और साधना में लीन रहे। यहां उन्होंने मानव कल्याण के लिए चिंतन किया। पुडुचेरी में ही 1950 में 5 दिसंबर को वे समाधिस्थ हो गए थे।

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