मालेगांव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित सभी आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा ये, जाने सब कुछ

महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए विस्फोट मामले में, लगभग 17 साल बाद मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी और 95 अन्य घायल हुए थे।

विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अभियोजन पक्ष की जांच में कई खामियों का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं मिला, जिसके आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया जा सके। सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया। अदालत ने मृतकों के परिवारों को दो-दो लाख रुपये और प्रत्येक घायल को 50,000 रुपये मुआवजे का आदेश दिया।

घटना मालेगांव के भिक्कू चौक के पास एक मस्जिद के नजदीक हुई थी, जहां मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण के फटने से भारी नुकसान हुआ। यह विस्फोट रमजान के पवित्र महीने में हुआ, जिससे क्षेत्र में तनाव फैल गया था। शुरुआत में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने जांच शुरू की, जिसे 2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि यह विस्फोट दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत से जुड़े चरमपंथियों द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया गया था।

न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम पर थी या उसमें बम लगाया गया था। मोटरसाइकिल का चेसिस नंबर स्पष्ट नहीं था और जांच में कई खामियां थीं, जैसे घटनास्थल का उचित पंचनामा न होना, फिंगरप्रिंट या डंप डेटा न जुटाना, और नमूनों का दूषित होना। कोर्ट ने यह भी कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के आवास पर विस्फोटक भंडारण या संयोजन का कोई सबूत नहीं मिला। साथ ही, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लागू नहीं हो सकता, क्योंकि आवश्यक मंजूरी नियमों के अनुसार नहीं ली गई थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिनव भारत के धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए होने का कोई सबूत नहीं है।

फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया और 13 दिनों तक अवैध हिरासत में रखकर प्रताड़ित किया गया। उन्होंने इसे भगवा और हिंदुत्व की जीत बताया, साथ ही कहा कि इस साजिश ने उनके जीवन को बर्बाद कर दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने न्यायपालिका का आभार जताया और कहा कि वह अब उसी समर्पण के साथ देश की सेवा करेंगे। उन्होंने जांच एजेंसियों को नहीं, बल्कि उनके कुछ अधिकारियों को गलत ठहराया।

पीड़ित परिवारों के वकील शाहिद नदीम ने फैसले पर निराशा जताते हुए कहा कि वे इसे बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। इस मामले में सात आरोपी थे, जिनमें साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे। सभी जमानत पर थे। इस फैसले ने एक लंबे और विवादास्पद कानूनी मामले को समाप्त कर दिया, जो राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र रहा।

LIVE TV