US ने छिना भारत से GSP दर्जा ! क्या अब टूट जाएगी दोस्ती?…

यूएस वैश्विक व्यापार युद्ध के बीच तमाम सहयोगियों के भी पेंच कस रहा है और भारत अब इसका नया शिकार बन गया है.शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विशेष व्यापार कार्यक्रम से भारत का नाम हटाने की घोषणा कर दी. यूएस ने कहा कि भारत ने उसे अपने बाजार में बराबरी और तार्किकता पर आधारित पहुंच के लिए आश्वस्त नहीं किया.

जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेस) कार्यक्रम के तहत, 2018 में अमेरिका ने 6 अरब डॉलर की कीमत की भारतीय वस्तुओं को आयात ड्यूटी से मुक्त रखा था.

विश्लेषकों का कहना है कि यूएस के इस कदम के बावजूद दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है क्योंकि दोनों का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है.

 

भारत को यूएस की जरूरत क्यों?

राष्ट्रपति ट्रंप की बड़ी प्राथमिकताओं में से एक दुनिया भर के देशों के साथ व्यापार घाटा कम करना है लेकिन भारत के साथ 142 अरब डॉलर की व्यापारिक साझेदारी भारत के हक में जाती है.

यूएस के सरकारी डेटा के मुताबिक, भारत ने 2018 में यूएस को करीब 54 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया और 33 अरब डॉलर की अमेरिकी वस्तुएं आयात कीं.

भारत अमेरिका से जिन वस्तुओं की खरीदारी करता है, उन पर 150 फीसदी तक ड्यूटी लगाता है. ट्रंप ने लगातार मोटरसायकल और व्हिस्की जैसी चीजों पर भारत के टैरिफ की आलोचना की है और अमेरिकी डेयरी किसानों और मेडिकल उपकरणों की कंपनियों की भारत में टैरिफ की वजह से निर्यात प्रभावित होने की शिकायत के बाद भारत को व्यापार में मिलने वाली विशेष छूट को खत्म कर दिया है.

ट्रंप प्रशासन का दूसरा सख्त कदम H-1B वर्क वीजा है जो भारतीय कामगारों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है. भारत की आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री की टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां यूएस के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं.

लेकिन इसके बावजूद भारत को यूएस की जरूरत है जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. हाल के महीनों में भारत ने 200 अरब लाख से ज्यादा यूएस सामान पर टैरिफ टाल दिए थे. भारतीय स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए यूएस टैरिफ के जवाब में ये टैरिफ लगाए गए थे.

भारत सरकार ने शनिवार को यूएस के जीएसपी खत्म करने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया लेकिन यह भी कहा कि वह दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश करेगा.

भारत ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, किसी भी रिश्ते में खासकर आर्थिक साझेदारी के मामले में कई ऐसे मुद्दे आते हैं जिन्हें हम मिलकर वक्त-वक्त पर सुलझाते रहते हैं. हम इस फैसले को नियमित अभ्यास का हिस्सा मानते हैं और यूएस के साथ मजबूत रिश्ते बनाए रखने की कोशिश करते रहेंगे.

 

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यूएस को भारत की जरूरत क्यों है?

भारत यूएस का 9वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है लेकिन इसका बड़ा बाजार अमेरिकी कारोबार के लिए बहुत ही अहम है. भारत की 1.3 अरब की आबादी तक पहुंच अमेरिकी कारोबार के लिए जरूरी है.

एमेजॉन, वालमार्ट, गूगल और फेसबुक हाल के कुछ सालों में अरबों का निवेश करती आ रही हैं. भारत में 60 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं जो चीन समेत बाकी देशों से बहुत ज्यादा हैं.

इनमें नेटफ्लिक्स, ऊबर और डिज्नी के उपभोक्ता भी शामिल हैं. डिजनी ने भारत के सबसे बड़े स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हॉटस्टार का भी हाल ही में अधिग्रहण किया है.

हालांकि, भारत सरकार ने इस साल कई ऐसे प्रतिबंध लगाए हैं जिनसे बाहरी कंपनियों के लिए कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा.

विदेशी रिटेलरों पर कड़े प्रतिबंधों की वजह से ऐपल जैसी कंपनियों को भी संघर्ष करना पड़ रहा है. हाल ही में नई दिल्ली के दौरे पर आए यूएस वित्त मंत्री विल्बर रॉस ने भारत के नए नियमों की आलोचना की थी और कहा था कि व्यापारिक साझेदारी बराबरी और पारदर्शी पर आधारित होनी चाहिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में भारी-भरकम विदेशी निवेश आकर्षित किया है. कई विदेशी निवेशक और कंपनियां यह देखने को उत्सुक हैं कि मोदी के दूसरे कार्यकाल में भारत का बढ़ता संरक्षणवाद खत्म होगा या नहीं.

ट्रंप वैश्विक स्तर पर चीन और मेक्सिको समेत कई मोर्चों पर व्यापारिक लड़ाई लड़ रहे हैं. विश्लेषकों को आशंका है कि व्यापार-युद्ध की वजह से यूएस अपना एक खास सहयोगी खो सकता है.

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड रोसो ने कहा, दोनों पक्षों के नेताओं को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये थोड़े वक्त के उतार-चढ़ावों को नजरअंदाज करना चाहिए भले ही उसकी राजनीतिक कीमत अदा करनी पड़े. दोनों सरकारें जल्द से जल्द इन गतिरोधों को खत्म करके रिश्ते को मजबूत करने की कोशिश करे.

 

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