
महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोकहितकारी चिन्तन कालजयी होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। आचार्य विनोबा भावे हमारे ऐसे ही एक प्रकाश स्तंभ है, जिनकी जन्म जयन्ती 11 सितम्बर को मनाई जाती है। वे अपने समय के सूर्य थे। रोशनी उनके साथ चलती थी। वे संतों की उत्कृष्ट पराकाष्ठा थे, भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे।
उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। वे भारत में भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता के रूप में सुपरिचित थे। वे भगवद्गीता से प्रेरित जनसरोकार वाले जननेता थे, उपदेष्टा थे, जिनका हर संवाद सन्देश बन गया है।
विनोबा भावे ने गाँधीजी के साथ देश के स्वाधीनता संग्राम में बहुत काम किया। उनकी आध्यात्मिक चेतना समाज और व्यक्ति से जुड़ी थी। इसी कारण सन्त स्वभाव के बावजूद उनमें राजनैतिक सक्रियता भी थी। उन्होंने सामाजिक अन्याय तथा धार्मिक विषमता का मुकाबला करने के लिए देश की जनता को स्वयंसेवी होने का आह्वान किया। उनके आध्यात्मिक विकास में उनकी माँ रुक्मिणी देवी का गहरा प्रभाव था। उन्होंने इसी प्रभाव में महाराष्ट्र के सभी सन्त तथा दार्शनिकों को पढ़ा था। उनकी गणित में विशेष रुचि थी।
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उन्हें भारत का राष्ट्रीय आध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी समझा जाता है। आज भी कुछ लोग यही कहते हैं। मगर यह उनके चरित्र का एकांगी और एकतरफा विश्लेषण है। वे गांधीजी के ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी’ से बहुत आगे, स्वतंत्र सोच के स्वामी थे। मुख्य बात यह है कि गांधीजी के प्रखर प्रभामंडल के आगे उनके व्यक्तित्व का स्वतंत्र मूल्यांकन हो ही नहीं पाया।
सचमुच! वह कर्मवीर कर्म करते-करते कृतकाम हो गया। पर हमारे सामने प्रश्न है कि हम कैसे मापें उस आकाश को कैसे बांधे उस समंदर को, कैसे गिने बरसात की बूंदों को? विनोबा की रचनात्मक, सृजनात्मक एवं समाज-निर्माण की उपलब्धियां इतनी ज्यादा है कि उनके आकलन में गणित का हर फार्मूला छोटा पड़ जाता है।
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11 सितम्बर की महत्वपूर्ण घटनाएँ