सूबे के आदिवासियों को है अच्छे दिनों का है इंतजार, ‘मामा’ कब करेंगें इनका भला

अनूपपुर। आसमां से झहरते पानी से बचने के लिए बरसाती ओढ़े कुर्सी पर बैठी नन्ही बाई (55) के पैर कीचड़ में तब्दील हो चुकी मिट्टी से सने हुए हैं। उसके पैरों में चप्पल भी नहीं है। वह हर आते-जाते व्यक्ति को बड़े गौर से निहारती है। उसकी आंखों में आस का एक कतरा है कि उसकी तकदीर बदलने शायद कोई आ जाए।

Shivraj-Singh-Chouhan

मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र के अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के बीजापुरी गांव की नन्ही बाई पहुंची थी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की जनसभा में। पानी बरस रहा था। वह अपने को भीगने से बमुश्किल बचा पा रही थी।

वह वहां आती हर कार और अन्य वाहनों को बड़े गौर से देखे जा रही थी। उसकी आंखों में उसके दर्द और तकलीफों को आसानी से पढ़ा जा सकता था। वह हिंदी आसानी से नहीं समझ पाती। कमजोर आवाज में बुदबुदाती है, “अभी तक न तो गैस मिली है और न ही चप्पल। कोई देगा क्या?”

सिर्फ नन्हीं बाई ऐसी नहीं है जो सरकार के भोपाल और दीगर स्थानों पर किए गए वादों और दावों की पोल खोलती है। यहां मौजूद सुरजोतिन बाई कहती है कि गैस सिलेंडर के लिए उनकी ओर से आवेदन दे दिया गया है, मगर अब तक मिला नहीं है।

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वह ये नहीं जान पर रही है कि उसे गैस सिलेंडर मिल भी पाएगा या अन्य योजनाओं की तरह प्रचार सुनेगी, मगर उसका लाभ नहीं ले पाएगी।

शहडोल संभागीय मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर बसे इस आदिवासी बहुल गांव में सुविधाओं और समस्याओं का क्या हाल है, लोग आसानी से बयां कर जाते हैं। ऊंची-नीची सड़कों, पहाड़ों के बीच से होकर इस गांव में पहुंचने पर नजर आता है कि ये लोग किन हालात में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।

आदिवासी इलाके की कला किसी से छुपी नहीं है। यहां के कलाकार अपनी कला को प्रदर्शित करने कांग्रेस की सभा में भी पहुंचे। उन्होंने अपने स्टॉल लगाए थे।

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इन स्टॉलों पर पत्तों के दोने, बांस की तीलियों से बने सूपा व टोकरी और काष्ठ-कृतियां को सजाकर रखा था। वे उत्साहित थे कि कांग्रेस नेता सिंधिया सहित बड़ी संख्या में शहरी लोग उन्हें देखने पहुंचे थे।

राज्य सरकार आदिवासियों को जूते-चप्पल बांटने के दावे कर रही है। ये जूते-चप्पल कम से कम बीजापुरी के आदिवासियों के पैरों में तो नजर नहीं आए। यहां पहुंची बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष बिना जूतों के ही थे। वहीं, सरकार की ओर से बांटे जा रहे जूते-चप्पल से कैंसर जैसी बीमारी फैलने की चर्चाओं ने आदिवासियों के मन में डर पैदा कर दिया है।

राज्य में आजादी के बाद आई सरकारों ने हमेशा आदिवासियों के कल्याण की ढेर सारी योजनाएं बनाईं, करोड़ों का बजट आवंटित किया। इतना ही नहीं, आदिवासियों की तकदीर बदलने के दावे भी किए गए। मगर इनके पास जाने पर ये सब हकीकत से काफी दूर नजर आता है।

 

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