18 साल बाद इस विकट स्थिति में फंसे अखिलेश, ‘बुआ’ का भी हुआ बुरा हाल

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में पीएम मोदी के विजय रथ को रोकने की तैयारी में जुटी समाजवादी पार्टी के सामने करीब 18 साल बाद एक बेहद गंभीर स्थिति आ चुकी है। सपा 18 साल बाद एक ऐसी परिस्थिति का सामना करेगी जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव किसी भी सदन के सदस्य नहीं होंगे।

सपा

साल 2012 में बहुमत के साथ सपा ने यूपी पर अपना शासन जमाया था और अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी, लेकिन पारिवारिक कलह के चलते 2017 के विधानसभा चुनाव में  इस बहुमत की सरकार को जनता ने नकार दिया था। जिसके बाद से अखिलेश यादव सिर्फ विधान परिषद के सदस्य की ही जिम्मेदारी निभा रहे थे। जिनका कार्यकाल 5 मई को ख़त्म हो रहा है।

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अखिलेश यादव ने 2019 का लोकसभा चुनाव कन्नौज से लड़ने की इच्छा जाहिर की है। कन्नौज से उनकी पत्नी डिंपल यादव फिलहाल सांसद हैं। लिहाजा 2019 से पहले अखिलेश सरकार को किसी भी सदन में मौजूद नहीं होंगे, क्योंकि उन्होंने विधान परिषद नहीं जाने का फैसला किया है। कमोबेश की यही स्थिति बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ है, जिन्होंने पिछले साल राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था।

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13 सदस्य होंगे निर्विरोध निर्वाचित

यूपी विधान परिषद में 13 सदस्यों का निर्विरोर्ध चुना जाना तय है। बीजेपी के 10 और उसके सहयोगी अपना दल (एस) से एक सदस्य उच्च सदन पहुंचेंगे। वहीं, सपा के समर्थन से बसपा के भीमराव अम्बेडकर और सपा के नरेश उत्तम पटेल विधान परिषद जाएंगे। बीजेपी के दो मंत्री महेन्द्र सिंह और मोहसिन रज़ा के अलावा सरोजिनी अग्रवाल, बुक्कल नवाब, यशवंत सिंह, जयवीर सिंह, विद्यासागर सोनकर, विजय बहादुर पाठक, अशोक कटारिया और अशोक धवन भी उच्च सदन जाएंगे। अपना दल के आशीष पटेल भी विधान सभा जाएंगे।

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