निजी अस्पताल ने बिना फीस दुधमुंहे को दी जिंदगी

निजी अस्पतालनई दिल्ली। दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली के मधु विहार में रहने वाले फिरोज अहमद के 13 माह के बच्चे मास्टर अमन अहमद को राजापुरी स्थित आकाश सुपर स्पेश्येलिटी हॉस्पिटल्स के चिकित्सकों ने दूसरा जीवन दिया है। मासूम अमन अपने घर में खेलते वक्त पानी की बाल्टी में डूबा गया था और उसे गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। चिकित्सकों ने इलाज के खर्च की परवाह किए बगैर बच्चे की जान बचाई।

अमन के पिता व मां सबा के उस वक्त पैरों तले जमीन खिसक गई थी, जब उन्होंने अपने इकलौते दुधमुंहे बच्चे को पानी भरे बाल्टी में डूबा हुआ पाया। फिरोज उसे पास के क्लीनिक में लेकर गए, लेकिन बच्चे की गंभीर हालत को देखते हुए चिकित्सकों ने उसे भर्ती करने से मना कर दिया, क्योंकि बच्चे को पीडियाट्रिक आईसीयू की जरूरत थी, जो उस क्लीनिक में उपलब्ध नहीं था।

बच्चा सांस नहीं ले पा रहा था, बेहोश था। फिरोज और सबा उसे लेकर दूसरे अस्पताल पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने इलाज का लंबा-चौड़ा खर्च बताकर पहले फीस जमा करने को कहा। फिरोज ने विनती की, पर सुनी नहीं गई।

वहां के चिकित्सक ने बच्चे को सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा और बच्चे पर निगाह डालने की फीस के तौर पर 1800 रुपये जमा करने का फरमान सुना दिया। मजबूर पिता ने फीस चुकाकर वहां से सरकारी अस्पताल का रुख किया। इस बीच बच्चे की हालत लगातार गिरती जा रही थी। उसी दौरान एक दोस्त के सुझाव पर फिरोज बच्चे को इलाके में हाल ही में खुले एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल लेकर पहुंचा। इस अस्पताल में चिकित्सकों ने फौरन बच्चे को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखने का फैसला लिया।”

आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के इमर्जेसी मेडिकल ऑफिसर, पीडियाट्रिक रजिस्ट्रार और पीडियाट्रिक आईसीयू के प्रभारी डॉ. विक्रम गगनेजा सहित चिकित्सकों का एक समूह तुरंत बच्चे को देखने पहुंचा। इन सभी ने बच्चे की दोबारा जांच करने और आगे के इलाज व जरूरी देखभाल के लिए उसे पीडियाट्रिक आईसीयू में भर्ती करने का सुझाव दिया।

विभिन्न जांचों व इलाज में होने वाले खर्च के बारे में सोचकर फलों का जूस बेचने वाला फिरोज निराशा से भर गया। उसने अपनी नम आंखों से हाथ जोड़कर विनती की कि वह एक बेहद गरीब परिवार से है और फलों का जूस बेचकर किसी तरह अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाता है, इसलिए वह यहां इलाज करवाने में सक्षम नहीं है।

वह बच्चे को सरकारी अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगा, तभी एमडी डॉ. आशीष चौधरी ने मजबूर पिता की बात सुनकर बच्चे को बचाने और इलाज का सारा खर्च अस्पताल द्वारा उठाने का निर्णय लिया। इलाज शुरू हुआ और बच्चे की जान बच गई। गरीब माता-पिता ने राहत की सांस ली।

अस्पताल के चिकित्सक डॉ. विक्रम गगनेजा कहते हैं, “हमें यह बिल्कुल पता नहीं था कि हमारा पीडियाट्रिक आईसीयू एक अनमोल जिंदगी को बचा लेगा। बच्चा उम्मीद से भी ज्यादा तेजी से ठीक हुआ। बच्चे की तंत्रिका प्रणाली व सांस की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ। दो दिन बाद ही उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया। तीसरे दिन उसके मुंह से ट्यूब हटा दिया गया। वह सामान्य ढंग से खाना खाने लगा और मां से बात भी करने लगा।”

फिरोज ने कहा, “मैं इस अस्पताल के डाक्टरों का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा। उन्होंने मेरे बच्चे के इलाज का पूरा खर्च उठाया। सात दिनों तक रहने के दौरान अस्पताल ने बच्चे की पूरी देखभाल की। मेरा पूरा परिवार और खासतौर पर मैं आकाश हेल्थकेयर और डॉ. विक्रम व अशीष चौधरी को दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मेरे बच्चे की जान बचा ली।”

डॉ. चौधरी के चेहरे पर संतुष्टि का भाव था। उन्होंने कहा, “बच्चे की हालत देख यह साफ था कि उसे बचाने व स्वस्थ्य करने में कई सप्ताह तक वेंटिलेटर सपोर्ट व महंगी दवाओं की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन हमने बच्चे के परिवार से कहा कि खर्च की फिक्र छोड़िए, सिर्फ दुआ कीजिए।”

एक गरीब परिवार के बच्चे की अनमोल जिंदगी बचाने वालों ने यह साबित किया कि चिकित्सा व्यापार नहीं, बल्कि सेवा कार्य है। इस वाकये ने इस मिथक को भी तोड़ दिया कि प्राइवेट अस्पताल गरीबों के लिए नहीं है। साथ ही अस्पताल के नाम पर लूट-खसोट का धंधा चलाने वालों के उन लोगों के गाल पर करारा तमाचा भी है, जो ज्यादा कमाने की होड़ में गरीब मरीजों को तड़पने के लिए छोड़ देते हैं।

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