
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015 के दादरी लिंचिंग मामले में सभी 19 आरोपियों के खिलाफ चल रहे मुकदमों को वापस लेने के लिए कोर्ट में आवेदन दायर कर दिया है। यह मामला 52 वर्षीय मोहम्मद अख़लाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या से जुड़ा है, जो गौहत्या की अफवाह पर हुआ था।
ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 को हुई इस घटना ने देशभर में आक्रोश फैला दिया था। सरकारी वकील भाग सिंह भाटी ने पीटीआई को पुष्टि की कि राज्य सरकार ने 26 अगस्त 2025 के पत्र के आधार पर यह कदम उठाया है। सूरजपुर कोर्ट में आवेदन दाखिल हो चुका है और अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।
सरकार की ओर से जॉइंट डायरेक्टर प्रॉसीक्यूशन ब्रजेश कुमार मिश्रा ने आवेदन में तर्क दिए हैं कि शिकायतकर्ता (अख़लाक की पत्नी इकरामन) और गवाहों (बेटा दानिश और बेटी शाइस्ता) के बयानों में विरोधाभास हैं। पुलिस के सेक्शन 161 के बयानों में किसी आरोपी का नाम नहीं लिया गया, जबकि सेक्शन 164 में नामों की संख्या बदलती रही। इसके अलावा, आरोपियों के पास कोई हथियार या तेजाबी चीजें बरामद नहीं हुईं और पीड़ित व आरोपियों के बीच कोई पूर्व शत्रुता नहीं थी। सभी एक ही गांव बिसाहड़ा के निवासी हैं।
घटना का संक्षिप्त विवरण
28 सितंबर 2015 को बिसाहड़ा गांव में स्थानीय मंदिर से लाउडस्पीकर पर घोषणा हुई कि अख़लाक ने गाय काटी और फ्रिज में गोमांस रखा है। इसके बाद भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया। अख़लाक को घर से घसीटकर पीटा गया, जबकि बेटा दानिश ने बचाने की कोशिश की और घायल हो गया। इकरामन ने उसी रात जर्चा थाने में 10 नामजद और 4-5 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। अख़लाक को नोएडा के निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। दानिश को दिल्ली के आर्मी आरएआर अस्पताल रेफर किया गया। पुलिस ने 15 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिसमें स्थानीय भाजपा नेता संजय राणा के बेटे विशाल राणा मुख्य आरोपी थे। सभी आरोपी 2017 में जमानत पर रिहा हो चुके हैं।
अख़लाक परिवार की प्रतिक्रिया
अख़लाक परिवार के वकील यूसुफ सैफी ने कहा कि उन्हें अभी तक कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं मिला है, लेकिन प्रक्रिया की जानकारी है। उन्होंने कहा, “मैं दस्तावेजों की जांच के बाद ही टिप्पणी करूंगा, सुनवाई से पहले या दौरान।” परिवार ने अभी कोई औपचारिक विरोध नहीं जताया है, लेकिन घटना के बाद से वे न्याय की मांग करते रहे हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: विपक्ष का तीखा विरोध
कांग्रेस ने सरकार के इस कदम को “खतरनाक रुझान” बताया। राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम ने कहा, “यह धार्मिक आधार पर विभाजन फैलाने और लिंचिंग करने वालों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की साजिश है। मुख्यमंत्री योगी के खिलाफ भी केस वापस लिए जाते हैं, तो यह अपेक्षित था। हम इसकी निंदा करते हैं।” सीपीआई(एम) ने भी निंदा की।
नेता एमए बेबी ने कहा, “एक दशक बाद अख़लाक की लिंचिंग में सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेना शर्मनाक है, जिसमें भाजपा नेता का बेटा शामिल है।” भाजपा ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।





