जानबूझकर गलत आरटीआई जानकारी देने पर जुर्माना, कार्रवाई का भी प्रावधान

मुंबई। विभिन्न सरकारी विभाग आज सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जवाब के बाद में खंडन कर देते हैं। यह अपने आप में एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इस बीच एक पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने कहा है कि किसी भी आवेदक को गलत सूचना देने पर सूचना अधिकारी के खिलाफ जुर्माना और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

आरटीआई

पूर्व सीआईसी शैलेश गांधी ने बताया, “कोई भी सूचना अधिकारी, जो आरटीआई अधिनियम के तहत जानबूझकर गलत जानकारी या भ्रामक सूचना मुहैया कराता है, उसपर आयुक्त द्वारा 25 हजार रुपये का जुर्माना और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की जा सकती है।”

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पूर्व सीआईसी ने कहा कि वैसे कुछ मामलों में बिना गलत इरादे के वास्तव में त्रुटियां हो सकती हैं, उन मामलों में संबंधित विभाग को तुरंत उस चूक के लिए स्पष्टीकरण और उसके साथ ही सही जानकारी प्रदान करनी चाहिए।

गांधी की टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब आरटीआई से प्राप्त जानकारियों का लगातार खंडन कर दिया जा रहा है। कम से कम पांच ऐसे उदाहरण हैं, जो हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बने थे।

पश्चिम रेलवे ने पिछले नवंबर में कार्यकर्ता अनिल गलगली को सूचित किया था कि मुंबई-अहमदाबाद रेल खंड अपनी क्षमता से 40 प्रतिशत नीचे चल रहा है।

इस खबर ने उस वक्त देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था, जब नरेंद्र मोदी की सरकार महत्वाकांक्षी बुलेट रेल परियोजना की तैयारी पूरी कर चुकी थी। इस खबर ने परियोजना की व्यावहारिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

आरटीआई के खुलासे से मचे कोहराम के बाद भारतीय रेलवे और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने व्यक्तिगत तौर पर सूचना का खंडन किया और बाद में दावा किया कि इस खंड में रेलगाड़ियां न केवल 100 फीसदी क्षमता के साथ दौड़ रही हैं, बल्कि ये काफी फायदेमंद भी साबित हो रही हैं।

गलगली ने बताया, “इस तरह की हरकतों से सूचना अधिकारियों के बीच डर पैदा हो गया है, और वे आरटीआई के जवाब देने से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वे इस बात को लेकर आशंकित रहते हैं कि उनके द्वारा मुहैया कराई गई सही जानकारी अगर विवादास्पद हुई तो उसका बाद में खंडन कर दिया जाएगा।”

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से ने मार्च 2018 में उस समय सनसनी पैदा कर दी, जब उन्होंने एक आरटीआई जवाब को सार्वजनिक किया था जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र सरकार के मुख्यालय ‘मंत्रालय’ में एक सप्ताह के भीतर 3,19,000 से ज्यादा चूहों को मार दिया गया।

यद्यपि आरटीआई के जवाब ने एक घोटाले का संकेत किया था, लेकिन सरकार ने लीपापोती करते हुए कहा कि पूर्व मंत्री खड़से आरटीआई जानकारी की ‘गलत व्याख्या’ की और वास्तव में जानकारी में चूहों को पूरी तरह मारने के लिए जरूरी जस्ता फॉस्फाइड (एंटी-कृंतक) गोलियों की मात्रा का जिक्र किया गया था।

खड़से ने आईएएनएस को बताया, “इस मामले में मूल दस्तावेज उपलब्ध हैं, सरकार कैसे इस बात से मुकर सकती है? इसका स्पष्ट तौर पर मतलब है कि वह कुछ छिपाने का प्रयास कर रही है। अगर वह अपने दस्तावेजों को ही स्वीकार नहीं कर सकती, तो बेहतर होगा कि वह आरटीआई अधिनियम को समाप्त कर दे।”

मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम ने उसी महीने (मार्च) एक आरटीआई जानकारी को सार्वजनिक कर सनसनी फैला दी, जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कार्यालय में रोजाना करीब 18,600 कप चाय की खपत होती है।

निरूपम ने आईएएनएस को बताया, “बाद में सरकार ने अपने खुद के आरटीआई जवाब से पूर्ण रूप से इंकार कर दिया। यह घटना ईमानदारी से नौकरी करने की कोशिश कर रहे बेचारे सूचना अधिकारी पर जबरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव डालती है। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र और राज्य की वर्तमान भाजपा सरकार आरटीआई अधिनियम को पूरी तरह ध्वस्त करना चाहती है।”

हाल की एक घटना में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने मध्यप्रदेश के नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ को दिए अपने ही आरटीआई जवाब का खंडन कर दिया था। बोर्ड ने अपने जवाब में पूरे भारत में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के भारी भरकम बकाए और 3,002 करोड़ रुपये से अधिक की आयकर माफी की बात कही थी। बाद में बोर्ड ने कहा था कि गलत आंकड़े दे दिए गए थे।

गौड़ ने आईएएनएस को बताया, “मेरे एक पंक्ति के सवाल के लिए मुझे करीब 1,100 जवाब प्राप्त हुए। यह जवाब प्रधान आयुक्तों से लेकर ब्लॉक स्तर के अधिकारियों द्वारा भेजे गए थे। इनमें से पत्र पंजीकृत स्पीड पोस्ट से भेजे गए, जिसमें प्रत्येक पर 50 रुपये की लागत आई होगी। यानी करदाताओं की गाढ़ी कमाई का 50 हजार रुपये इस पर खर्च किए गए।”

अप्रैल में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की अंधाधुंध खरीद पर खुलासा करने के बाद भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने दावे के साथ कहा था कि यह जानकारी गलत तरीके से प्रदान की गई है, लेकिन उन्होंने लिखित स्पष्टीकरण कभी नहीं दिया।

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एक साल पहले ईवीएम के मुद्दे पर कड़ी मेहनत करने वाले सशक्त आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन एस. रॉय ने कहा, “सरकारी विभाग कैसे आरटीआई को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं, मैं इसके बारे में जागरूक हूं। इसलिए मैंने अब तक प्राप्त सभी आरटीआई जानकारियों के आधार पर बम्बई उच्च न्यायालय में एक पीआईएल (जनहित याचिका) दाखिल करने के साथ ही सावधानी बरतनी शुरू कर दी है। अब न्यायालय तय करेगी कि ईसीआई के जवाब सही हैं या नहीं।”

पूर्व सीआईसी गांधी ने कहा कि यहां अपील करने या अदालतों के रास्ते भी खुले हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि अधिकांश आयुक्त और अदालतें आरटीआई विरोधी हैं और पूरी प्रक्रिया में बहुत समय खर्च हो सकता है।

गांधी ने सुझाव दिया, “आरटीआई एक बुरे दौर में है। सरकार, सूचना आयुक्त और अदालतें इसे बहुत हल्के में लेत रही हैं। ऐसे में मीडिया और आरटीआई कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे इसे ही जाने न दें, और लगातार इसे उठाते रहें।”

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