
महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों का हस्तिनापुर में 36 सालों तक राज रहा. इसके बाद पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया. इस यात्रा के दौरान युधिष्ठिर को छोड़कर सभी की मृत्यु हो गई. सिर्फ युधिष्ठर कुत्ते के साथ स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके. लेकिन इसके बाद भी पांडवों ने कलियुग में जन्म लिया था.
शास्त्रों के अनुसार, महाभारत युद्ध में आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया. इस पर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी, जिसके बाद अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों के सभी पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया.
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जब पांडवों को पता चला तो वे भगवान शिव से युद्ध करने चले गए. पांडव, शिवजी से युद्ध करने के लिए पहुंचे तो उनके सभी अस्त्र-शस्त्र शिवजी में समा गए. क्रोधित महादेव ने कहा- तुम श्रीकृष्ण के भक्त हो. ऐसे में इस अपराध का फल तुम्हें कलियुग में मिलेगा. पांडव जब श्रीकृष्ण के पास पहुंचे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि कौन-सा पांडव कलियुग में कहां और किसके घर जन्म लेगा.
यहां जन्में थे पांडव
कलियुग में अर्जुन का जन्म परिलोक नाम के राजा के यहां हुआ था. उनका नाम ब्रह्मानंद था. युधिष्ठर का जन्म वत्सराज नाम के राजा के यहां हुआ. उनका नाम मलाखान था. कलियुग में भीम वनरस राज्य के राजा बनें. उनका नाम वीरण था. नकुल का जन्म कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के यहां हुआ. उनका नाम लक्षण था. कलियुग में सहदेव का जन्म भीमसिंह नाम के राजा घर में हुआ. उनका नाम देवसिंह था.