पीएम मोदी की फेम में भारी कमी! कम हुआ लोगों का भरोसा?

मोदी की लोकप्रियतानई दिल्ली। देश से लेकर विदेश तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सभी कायल है। सोशल मीडिया पर भी उनकी फैन्स फालोविंग इतनी ज्यादा है, जितनी शायद ही देश में किसी अन्य पीएम की रही हो। फिर भी समय के साथ अब उनका रुतबा कहीं न कहीं कम होता दिखाई दे रहा है। अब इसे समय का फेर कहें या उनके साहसिक क़दमों का असर जिन्हें उन्होंने निर्भीकता से उठाया था।

दरअसल, न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों की वजह से जनता में असंतोष है। इस कारण उनके प्रति भारत के ग्राहकों में भरोसा काफी कम हुआ है।

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हालांकि उनके द्वारा ये दोनों ही क्रांतिकारी कदम देश में बड़ा बदलाव लाने के उद्देश्य से उठाए गए थे। लेकिन इनका व्यापक असर दिखाई नहीं दिया। दावा यह भी किया गया कि इन फैसलों ने भारत की आर्थिक ग्रोथ को काफी धीमा कर दिया।

बता दें इस मामले में अधिकतर अर्थशास्त्रियों का भी यही मानना है कि प्रधानमंत्री की ओर से लिए गए ये बड़े फैसले कारगर साबित नहीं रहे। इनकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था काफी लचर हुई है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हिमांशु कहते हैं, ‘चीजें खराब, खराब और खराब होती जा रही हैं।’ अब भी अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है पर असफलता से काफी दूर है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी की लोकप्रियता और उनके फैसले पर लोगों की राय को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

इसके मुताबिक शेयर मार्केट लगातार चढ़ रहा है। देश में कई रेल, रोड और पोर्ट के प्रॉजेक्ट्स शुरू हो रहे हैं और विदेशी निवेश अप्रैल से सितंबर के बीच में 2016 के इसी अवधि की तुलना में 17 फीसदी बढ़ा है।

सरकार ने शुक्रवार को अनुमान व्यक्त करते हुए कहा कि देश का GDP 2017-18 वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत रहेगा।

हालांकि इस आंकड़े को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह देश के पिछले चार वर्षों के इतिहास में सबसे कम है।

यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को पाने की चाहत दुनिया के कई देश रखते हैं।

खास बात यह है कि ऐसा नहीं लगता है कि मोदी की नीतियों से बड़ी संख्या में भारतीयों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और गड़बड़ियां बढ़ रही हैं।

खबरों के मुताबिक़ इससे भी बड़ा मुद्दा है सामाजिक तनाव खासतौर से जो हिंदुओं और मुसलमानों में मतभेद की दीवार खड़ी करता है। ऊंची और नीची जाति को लेकर भी तनाव बढ़ता है।

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आशंका इस बात की है कि पीएम मोदी भी खुद हिंदू राष्ट्रवाद पर ज्यादा जोर देने लगे हैं और उनकी दूसरी पहचान की चमक क्षीण होने लगी है।

1.3 अरब आबादी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। 10 वर्षों में आर्थिक जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन जाएगी।

भारत केवल अमेरिका और चीन से पीछे होगा। भविष्य में क्या होता है, यह तो महत्वपूर्ण है पर देश के भीतर का भरोसा कमजोर हो रहा है।

नौकरियों के अवसर मुहैया कराना देश की सबसे प्रमुख राजनीतिक प्राथमिकता है। उधर, मोदी हर साल एक करोड़ नौकरियां देने के अपने वादे से काफी दूर हैं।

वहीं दूसरी ओर गुजरात, जो मोदी का गढ़ माना जाता है, वहां के भी काफी लोग अब मानते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है, जबकि इनमें से काफी लोग मोदी के कायल रहे हैं।

सूरत में कपड़ा उद्योग काफी रोजगार पैदा करता है। सैकड़ों सालों से इसका गौरवशाली इतिहास रहा है, यहां से बड़ी मात्रा में निर्यात होता आ रहा है, लेकिन आज आलम यह है कि निर्यात करीब आधा हो गया है। इसका असर रोजगार पर पड़ा है और बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ी है। कई औद्योगिक क्षेत्रों में जो व्यापारी खुशी-खुशी माल लोड करते थे, आज बदहाल स्थिति में हैं।

दिसंबर में राज्य में चुनाव हुए, जिस पर देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजर थी। इस चुनाव को मोदी के गवर्नेंस पर जनमत संग्रह की तरह माना जा रहा था।

गुजरात के मतदाताओं ने नई स्टेट असेंबली के लिए वोट किया। मोदी की पार्टी ने बहुमत तो हासिल कर लिया पर उसे 16 सीटें गंवानी पड़ी। संदेश साफ था- मोदी की पार्टी बीजेपी नंबर 1 तो है, लेकिन अब पहले वाला जादू नहीं दिखा।

इससे पहले सभी विपक्षी पार्टियों ने भी इस मामले में कड़ी आपत्ति जताई थी। साथ ही कई बार आर्थिक मामलों के जानकारों के हवाले से भी विपक्ष ने अर्थ व्यवस्था के लचर होने का खुलासा किया था।

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